' जब - जब होता नाश धर्म का , और पाप बढ़ जाता है ,
तब लेते अवतार प्रभु , यह विश्व शांति पाता है l
दसों दिशाओं में रावण का आतंक फैला था l कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि उसका विरोध - प्रतिरोध किया जा सकता है l अनीति जब चरम पर पहुंची तब राम - जन्म हुआ l तब भगवान की सहायता के लिए रीछ , वानर , गिद्ध आदि के रूप में वरिष्ठ आत्माओं ने जन्म लिया l सबके सहयोग से आतंक का अंत हुआ और राम - राज्य की स्थापना हुई l
इसी तरह दुर्योधन आदि कौरवों का अहंकार व अन्याय जब चरम पर पहुँच गया तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन के सारथि बने और अनीति का अंत हुआ l
युगों - युगों से यही होता आ रहा है l युग के साथ अनीति का अंत करने के तरीके बदल जाते हैं l
कलियुग में जब लोगों में कायरता बढ़ जाती है , रावण की तरह बलवान और बलराम के शिष्य दुर्योधन की तरह बहादुर लोग नहीं होते l पीठ पर वार करने वालों की संख्या अधिकतम होती है l
वास्तव में अपराधी कौन है , यह मालूम करना बहुत कठिन होता है l तब भगवान विभिन्न जाग्रत आत्माओं के रूप में , विभिन्न अंशों में अवतरित होते हैं और तब अनीति का अंत आमने - सामने की लड़ाई से नहीं , बुद्धि और विवेक से होता है l
तब लेते अवतार प्रभु , यह विश्व शांति पाता है l
दसों दिशाओं में रावण का आतंक फैला था l कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि उसका विरोध - प्रतिरोध किया जा सकता है l अनीति जब चरम पर पहुंची तब राम - जन्म हुआ l तब भगवान की सहायता के लिए रीछ , वानर , गिद्ध आदि के रूप में वरिष्ठ आत्माओं ने जन्म लिया l सबके सहयोग से आतंक का अंत हुआ और राम - राज्य की स्थापना हुई l
इसी तरह दुर्योधन आदि कौरवों का अहंकार व अन्याय जब चरम पर पहुँच गया तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन के सारथि बने और अनीति का अंत हुआ l
युगों - युगों से यही होता आ रहा है l युग के साथ अनीति का अंत करने के तरीके बदल जाते हैं l
कलियुग में जब लोगों में कायरता बढ़ जाती है , रावण की तरह बलवान और बलराम के शिष्य दुर्योधन की तरह बहादुर लोग नहीं होते l पीठ पर वार करने वालों की संख्या अधिकतम होती है l
वास्तव में अपराधी कौन है , यह मालूम करना बहुत कठिन होता है l तब भगवान विभिन्न जाग्रत आत्माओं के रूप में , विभिन्न अंशों में अवतरित होते हैं और तब अनीति का अंत आमने - सामने की लड़ाई से नहीं , बुद्धि और विवेक से होता है l
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