इस स्रष्टि में सबसे महत्वपूर्ण मनुष्य के कर्म हैं l किये गए कर्मों के आधार पर ही वह अपनी गति प्राप्त करता है l यह मनुष्य की अदूरदर्शिता है कि वह क्षणिक लाभ के लिए वर्तमान में बुरे कर्म करने के लिए तैयार हो जाता है l कर्मों का फल तुरंत नहीं मिलता है इसलिए मनुष्य को भी अपने किये गए कर्मों का कोई एहसास नहीं होता l उसे लगता है कि इतने सारे लोग गलत कार्य कर रहे हैं और जीवन में सुख - भोग कर रहे हैं , सफल हैं तो वह भी क्यों न करे ?
कर्म की गति बड़ी गहन है l इसे समझने के लिए हमें इतिहास से , समाज से उदाहरण देखना चाहिए l व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को देखना चाहिए , थोड़े से जीवन को नहीं l समाज के अच्छे और बुरे व्यक्तियों के सम्पूर्ण जीवन का गहराई से अध्ययन कर के ही प्रकृति की कर्मफल व्यवस्था समझ आएगी l व्यक्ति का विवेक जाग जायेगा तब वह गलत कर्म करने से डरेगा l
कर्म के दर्शन को समझाने वाली एक कथा है ------ एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा --- " मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो --- 1. जो यहाँ है , वहां नहीं l 2. वहां हो , यहाँ नहीं
3. जो यहाँ भी नहीं हो , वहां भी न हो l 4. जो यहाँ भी हो और वहां भी हो l "
मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय माँगा l दो दिन बाद चार व्यक्तियों को लेकर वह दरबार में उपस्थित हुआ और बोला --- " राजन ! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है ----
1. यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है l यह गलत काम कर के यद्दपि यहाँ सुखी व संपन्न है किन्तु इसकी जगह वहां स्वर्ग में नहीं है l
2. दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है l यह यहाँ ईमानदारी से रहते हुए कष्ट में जरुर है , पर इसकी जगह वहां जरुर होगी l
3. तीसरा व्यक्ति भिखारी है , यह पराश्रित है l यह न तो यहाँ सुखी है , न वहां सुखी रहेगा l
4. यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए भलाई भी कर रहा है और सुखी - संपन्न भी है l अपने उदार व्यवहार के कारण यहाँ भी सुखी है और सत्कर्म करने से इसका स्थान स्वर्ग में भी सुरक्षित है l
मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उन कर्मों का फल कब मिलेगा , यह काल ( समय ) निश्चित करता है l
कर्म की गति बड़ी गहन है l इसे समझने के लिए हमें इतिहास से , समाज से उदाहरण देखना चाहिए l व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को देखना चाहिए , थोड़े से जीवन को नहीं l समाज के अच्छे और बुरे व्यक्तियों के सम्पूर्ण जीवन का गहराई से अध्ययन कर के ही प्रकृति की कर्मफल व्यवस्था समझ आएगी l व्यक्ति का विवेक जाग जायेगा तब वह गलत कर्म करने से डरेगा l
कर्म के दर्शन को समझाने वाली एक कथा है ------ एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा --- " मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो --- 1. जो यहाँ है , वहां नहीं l 2. वहां हो , यहाँ नहीं
3. जो यहाँ भी नहीं हो , वहां भी न हो l 4. जो यहाँ भी हो और वहां भी हो l "
मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय माँगा l दो दिन बाद चार व्यक्तियों को लेकर वह दरबार में उपस्थित हुआ और बोला --- " राजन ! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है ----
1. यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है l यह गलत काम कर के यद्दपि यहाँ सुखी व संपन्न है किन्तु इसकी जगह वहां स्वर्ग में नहीं है l
2. दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है l यह यहाँ ईमानदारी से रहते हुए कष्ट में जरुर है , पर इसकी जगह वहां जरुर होगी l
3. तीसरा व्यक्ति भिखारी है , यह पराश्रित है l यह न तो यहाँ सुखी है , न वहां सुखी रहेगा l
4. यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए भलाई भी कर रहा है और सुखी - संपन्न भी है l अपने उदार व्यवहार के कारण यहाँ भी सुखी है और सत्कर्म करने से इसका स्थान स्वर्ग में भी सुरक्षित है l
मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उन कर्मों का फल कब मिलेगा , यह काल ( समय ) निश्चित करता है l
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