श्रीमद् भगवद्गीता का श्लोक है ----- युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु l युक्त स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ll इस श्लोक का सरल भावार्थ इतना ही है कि अपने खान - पान , रहन - सहन , शयन - जागरण एवं श्रम करने में औचित्य का ध्यान रखना चाहिए l इन दोनों सूत्र का सार यही है कि यदि व्यवहार में प्रकृति का साहचर्य एवं चिंतन में परमात्मा का साहचर्य बना रहे तो फिर स्वास्थ्य - संकट नहीं खड़े होते l ये दोनों सूत्र ऐसे हैं --- जिनमे कहीं भी , किसी भी देश में स्वास्थ्य - क्रांति लाई जा सकती है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का मत है ---- ' जिस दिन हम प्रचलित असंयम को सभ्यता समझने की मान्यता बदल देंगे , अपने सोचने का ढंग सुधार लेंगे , उसी दिन मानव जीवन पर लगा अस्वस्थता का ग्रहण उतर जायेगा l '
वे कहते हैं --- " यदि रोगों से छुटकारा पाना है तो आज और आज से हजारों साल बाद इसी मान्यता को अपनाना पड़ेगा कि प्राकृतिक आहार - विहार अपनाने के अतिरिक्त स्वस्थ होने , नीरोग रहने और दीर्घजीवन जीने का अन्य कोई मार्ग नहीं है l "
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का मत है ---- ' जिस दिन हम प्रचलित असंयम को सभ्यता समझने की मान्यता बदल देंगे , अपने सोचने का ढंग सुधार लेंगे , उसी दिन मानव जीवन पर लगा अस्वस्थता का ग्रहण उतर जायेगा l '
वे कहते हैं --- " यदि रोगों से छुटकारा पाना है तो आज और आज से हजारों साल बाद इसी मान्यता को अपनाना पड़ेगा कि प्राकृतिक आहार - विहार अपनाने के अतिरिक्त स्वस्थ होने , नीरोग रहने और दीर्घजीवन जीने का अन्य कोई मार्ग नहीं है l "
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