संसार में जितनी भी उथल - पुथल होती रही है , उनमे वाणी की भूमिका प्रधान रूप से रही है l इसलिए इसे शक्ति कहकर वर्णित किया गया है l हम चाहे तो इसका सदुपयोग कर स्वर्ग का निर्माण के सकते हैं और दुरूपयोग कर नरक का ---- यह पूर्णत: प्रयोक्ता पर निर्भर है l
मनुष्य के भाव - संस्थान में हलचल उत्पन्न करना , दिशा देना और कुछ से कुछ बना देना वाणी के लिए ही संभव है l इसलिए स्वार्थ , कामना , वासना से ऊपर उठकर अपनी वाणी का सदुपयोग दूसरों के जीवन को सही दिशा देने के लिए करना चाहिए l
मनुष्य के भाव - संस्थान में हलचल उत्पन्न करना , दिशा देना और कुछ से कुछ बना देना वाणी के लिए ही संभव है l इसलिए स्वार्थ , कामना , वासना से ऊपर उठकर अपनी वाणी का सदुपयोग दूसरों के जीवन को सही दिशा देने के लिए करना चाहिए l
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