महाप्रभु चैतन्य के जीवन काल की घटना है ---- वे जगन्नाथपुरी क्षेत्र में प्रचार यात्रा पर निकले थे l मंडली में कई विद्वान् भी थे l वटवृक्ष के नीचे एक किसान को उन्होंने तन्मयता पूर्वक गीता पाठ करते हुए देखा l उसकी आँखों से आंसू टपक रहे थे l मंडली रूककर पाठ सुनने लगी l नितांत अशुद्ध उच्चारण था l अल्प शिक्षित था, संस्कृत नहीं जनता था l विद्वानों ने उसे टोका तो वह बोला --- " मेरे लिए इतना ही बहुत है की भगवन जो कह रहे हैं , उसे मेरी आत्मा अमृत की तरह पी रही है l " उस भक्त को नमन करते हुए चैतन्य महाप्रभु ने कहा --- " भक्तों ! इस अशिक्षित की भावना सराहनीय है l यही है वह तत्व जो भक्त की उपासना को सार्थक बनता है l समर्पण का भाव नियोजित किये बिना सारे पूजा उपचार के क्रम खोखले हैं l "
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