आचार्य जी ने अखंड ज्योति में लिखा है - ' यह कोई जरुरी बात नहीं कि सब लोग अपना धर्म , जातीयता , भाषा , पहनावा छोड़कर एक से बन जाएँ पर अपनी संस्कृति , धर्म की रक्षा करते हुए हमें दूसरे की संस्कृति और धर्म का आदर करना चाहिए l कलह या संघर्ष की वृद्धि तब होती है जब मनुष्य दुराग्रह या पक्षपात के कारण उचित को छोड़कर अनुचित का समर्थन करता है l इसलिए यदि हम संसार व्यापी शांति , सुख , प्रगति के पक्षपाती हैं और चाहते हैं कि हम तथा संसार के अन्य लोग सुखी जीवन व्यतीत करें तो उसके लिए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना ही हमारा कर्तव्य है l इसके लिए हमारा प्रथम कर्तव्य यही है कि अपने सुख - दुःख के समान दूसरों के सुख - दुःख को समझें l
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