आचार्य जी ने अखण्ड ज्योति -- फरवरी 1980 में लिखा है ---- ' यदि संसार के सफलतम और प्रतिभा संपन्न व्यक्तियों पर प्रयोग किया जाये तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि उनकी उपलब्धि एक जीवन की देन नहीं है , वरन उसके पीछे पिछले कई जन्मों की साधना - शक्ति पूंजी के रूप में जुड़ी हुई है l उसी पूंजी से सफलता के वर्तमान शिखर छुए जा सके हैं l इसलिए वर्तमान जीवन में किए गए प्रयासों की असफलता के बारे में सोच - सोचकर निराश होने का कोई कारण नहीं है l किसान बीज बोता है तो बोते समय तो यही लगता है कि बीज व्यर्थ मिटटी में जा रहे हैं , पर जब वे फसल के रूप में उग आते हैं तो प्रतीत होगा कि बोये गए बीज व्यर्थ नहीं गए वरन उनका निश्चित परिणाम प्राप्त हुआ l इसी प्रकार प्रगति और उत्कर्ष की दिशा में किये गए कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाते , उनका परिणाम आज नहीं , तो कभी न कभी मिलता अवश्य है l इसलिए गीताकार ने स्पष्ट किया है जिसका प्रारंभ कर दिया जाता है , उसका कभी नाश नहीं होता और न ही परिणाम में कोई उलट - फेर होता है l इसलिए परिणम न होता दिखाई देने पर भी प्रयत्नों को शिथिल नहीं करना चाहिए l अनवरत यत्नशील रहना चाहिए कि साधना का फल निश्चित रूप से मिलेगा l '
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