आचार्य जी का मत है कि -- बहुधा नए कामों का आरम्भ करते समय अशुभ की आशंका से मन भयभीत होने लगता है , ऐसी स्थिति में अशुभ आशंका को अपने मन से झटककर विचार करना चाहिए l सफलता और असफलता दोनों ही संभावनाएं खुली हुई हैं l यदि मन में आशा का अंकुर जमा लिया जाये तो असफलता हमें पराजित नहीं करती , उस स्थिति में व्यक्ति को यह संतोष रहता है कि असफलता कोई नया अनुभव दे गई l
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अच्छी और बुरी दोनों तरह की परिस्थिति आती हैं , सुख -दुःख के क्षण सभी के जीवन में आते हैं l असफलता , कठिनाइयों और कष्टों को याद रखने की अपेक्षा सफलताओं और सुखद क्षणों को याद करना आशा और उत्साहजनक होता है l ये स्मृतियां व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न करती हैं और जो व्यक्ति अपने आप में विश्वास रखता है वह बिना किसी भय के हर कठिनाई का सामना करने के लिए प्रस्तुत रहता है l आत्मविश्वास ही ईश्वर विश्वास है l
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