सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद प्रजा के कल्याण के लिए अनेकों कार्य किये l एक बार उसने अपने अधीन सभी राजाओं को बुलाकर कहा --- " आगामी वर्ष में जिस राजा का कार्य सर्वश्रेष्ठ होगा , उसे हम व्यक्तिगत रूप से पुरस्कृत करेंगे l " यह घोषणा सुनकर सभी राजा उत्साहपूर्वक अपने - अपने राज्यों में कार्य करने में जुट गए l
एक वर्ष बाद सभी राजा अपनी उपलब्धियों का विवरण देने सम्राट अशोक के दरबार में उपस्थित हुए l सभी ने यही बताया कि उन्होंने प्रजा पर अधिक कर लगाकर राजकोष में वृद्धि कर ली , परन्तु एक राजा बोला ---- " महाराज ! मैं राजकोष तो न बढ़ा सका , परन्तु मैंने अपने राज्य में विद्दालयों , चिकित्सालय, धर्मशालाओं की स्थापना जरुर कराई है l जनहित में उसके किये गए कार्यों को सुनकर सम्राट अशोक गदगद हो गए और बोले ---- " प्रजा का शोषण कर राज्य की आमदनी बढ़ाना शासक का कर्तव्य नहीं , बल्कि शासक का कार्य प्रजा को कष्टों से मुक्त कराना है l यही शासक सर्वश्रेष्ठ शासक के पुरस्कार का अधिकारी है l "
एक वर्ष बाद सभी राजा अपनी उपलब्धियों का विवरण देने सम्राट अशोक के दरबार में उपस्थित हुए l सभी ने यही बताया कि उन्होंने प्रजा पर अधिक कर लगाकर राजकोष में वृद्धि कर ली , परन्तु एक राजा बोला ---- " महाराज ! मैं राजकोष तो न बढ़ा सका , परन्तु मैंने अपने राज्य में विद्दालयों , चिकित्सालय, धर्मशालाओं की स्थापना जरुर कराई है l जनहित में उसके किये गए कार्यों को सुनकर सम्राट अशोक गदगद हो गए और बोले ---- " प्रजा का शोषण कर राज्य की आमदनी बढ़ाना शासक का कर्तव्य नहीं , बल्कि शासक का कार्य प्रजा को कष्टों से मुक्त कराना है l यही शासक सर्वश्रेष्ठ शासक के पुरस्कार का अधिकारी है l "
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