एक राजा को असाध्य रोग हो गया l वैद्यों ने उपचार बताया कि राजहंसों का मांस खाना चाहिए l हंस मानसरोवर पर रहते थे l साधु - संत ही वहां जाते थे , लेकिन कोई संत इस पाप कर्म के लिए तैयार नहीं हुआ l एक बहेलिया पैसे के लालच में संत का बाना पहनकर वहां जाकर हंसों को पकड़ कर लाने के लिए तैयार हो गया l मानसरोवर के राजहंस साधु - संतों से हिले - मिले थे l उन्हें देखकर उड़ते नहीं थे l संत वेशधारी बहेलिये ने उन्हें पकड़ लिया और राजा के सामने प्रस्तुत किया l राजा ग्लानि में पड़ गया l संत - श्रद्धा से पकड़े गए और छल वश लाए गए इन हंसों का स्वार्थवश वध अनुचित है l यह सोचकर उसने सभी हंसों को मुक्त कर दिया l सोचा , भगवान को ठीक करना होगा तो करेंगे l
बहेलिये पर इस घटना का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा l उसने सोचा जिस संत वेश के लिए हंसों तक में श्रद्धा है , उसे कलंकित नहीं करना चाहिए l उसने संन्यास ले लिया और संत बन गया l उधर राजा भी चमत्कारी ढंग से ठीक हो गया l
वेश की जब इतनी महत्ता है , तो उस चोले को धारण करने वाले लोग कर्म भी श्रेष्ठ करें , तो ही सार्थकता है l आज तो ऐसे वेशधारी बहेलिये बने बैठे हैं l
बहेलिये पर इस घटना का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा l उसने सोचा जिस संत वेश के लिए हंसों तक में श्रद्धा है , उसे कलंकित नहीं करना चाहिए l उसने संन्यास ले लिया और संत बन गया l उधर राजा भी चमत्कारी ढंग से ठीक हो गया l
वेश की जब इतनी महत्ता है , तो उस चोले को धारण करने वाले लोग कर्म भी श्रेष्ठ करें , तो ही सार्थकता है l आज तो ऐसे वेशधारी बहेलिये बने बैठे हैं l
No comments:
Post a Comment