वन्य पशु एक दूसरे का अनुकरण करते हुए जीवन भर भटकते और विचरते रहते हैं l उनका कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होता l भेड़ें इस आदत के लिए बुरी तरह बदनाम हैं l आगे चलने वाली भेड़ का मुंह जिस ओर भी उठ जाता है उसी दिशा में उनका पूरा समूह चल पड़ता है l किसी गड्ढे में अगली भेड़ के गिरते ही पीछे वाली भी सब उसी में गिरती चली जाती हैं l किसी को यह नहीं सूझता कि यह अनुकरण उचित है या नहीं l
इसी तरह मनुष्यों में भी विरले ही होते हैं जो स्वतंत्र चिन्तन और विवेक बुद्धि से काम लेते हैं l अपने से भारी - भरकम लगने वाले लोगों का अन्धानुकरण करने लगते हैं l जल्दी धनवान बनना , सुविधा - संपन्नता का प्रलोभन , लालच , लाभ की लालसा आदि विभिन्न सुख - वैभव , विलासिता को समय से पहले पा लेने की लालसा में व्यक्ति उन लोगों का अंधानुकरण करने लगते हैं जिन्होंने गलत तरीके से यह सब हासिल किया है l कुछ समय बाद जब आँख खुलती है तब प्रतीत होता है कि भटकाव के कुचक्र में फंसकर कितना अनर्थ कर लिया l
मनुष्य की अदूरदर्शिता उसकी विपत्ति का सबसे बड़ा कारण है l
इसी तरह मनुष्यों में भी विरले ही होते हैं जो स्वतंत्र चिन्तन और विवेक बुद्धि से काम लेते हैं l अपने से भारी - भरकम लगने वाले लोगों का अन्धानुकरण करने लगते हैं l जल्दी धनवान बनना , सुविधा - संपन्नता का प्रलोभन , लालच , लाभ की लालसा आदि विभिन्न सुख - वैभव , विलासिता को समय से पहले पा लेने की लालसा में व्यक्ति उन लोगों का अंधानुकरण करने लगते हैं जिन्होंने गलत तरीके से यह सब हासिल किया है l कुछ समय बाद जब आँख खुलती है तब प्रतीत होता है कि भटकाव के कुचक्र में फंसकर कितना अनर्थ कर लिया l
मनुष्य की अदूरदर्शिता उसकी विपत्ति का सबसे बड़ा कारण है l
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