पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कथन है --- " जीवन का अर्थ है समय , जो जीवन से प्यार करते हों वे अपना समय व्यर्थ न गंवाएं l "
आचार्य जी के अनुसार --- हमारा जीवन ही समय है , हमारा समय समाप्त होने पर जीवन ही समाप्त हो जायेगा l
जीवन में जो भी कार्य करने हैं वे इसी शरीर से संभव है l अत: जरुरी है कि शरीर स्वस्थ व रोगमुक्त रहे l एक कथा है ---- भगवान बुद्ध एक गाँव में ठहरे हुए थे l उनके दर्शन व सत्संग के लिए अनेक व्यक्ति आते थे l इसी क्रम में एक धनी व्यक्ति उनके दर्शन के लिए पहुंचा l l उसका शरीर भारी - भरकम था , सेवकों की मदद से कठिनाई से चल रहा था l झुक नहीं पा रहा था , अत: खड़े - खड़े अभिवादन कर बोला --- " भगवन ! मेरा शरीर अनेक व्याधियों का घर बन चुका है l रात को न तो नींद आ पाती है और न ही दिन में चैन से बैठ पाता हूँ l मुझे रोग मुक्ति का साधन बताने की कृपा करें l "
भगवान बुद्ध उसकी और करुणा भरी द्रष्टि से देखते रहे , फिर बोले ---- " भंते ! शारीरिक श्रम का अभाव , प्रचुर भोजन करने से उत्पन्न आलस्य , भोग व अनंत इच्छाओं की कामना ---- ये सब रोग पनपने के कारण हैं l जीभ पर नियंत्रण रखने , संयम पूर्वक सादा भोजन करने , शारीरिक श्रम करने , सत्कर्मों में रत रहने और अपनी इच्छाएं सीमित करने से ये रोग विदा होने लगते हैं l असीमित इच्छाएं और अपेक्षाएं शरीर को घुन की तरह जर्जर बना डालती हैं , इसलिए उन्हें त्यागो l "
सेठ को भगवान बुद्ध की बातों का मर्म समझ में आ गया और संयमित जीवन शैली अपनाने से कुछ ही दिनों उसने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया l अब वह पुन: भगवान बुद्ध मिलने आया l इस बार वह सेवकों बिना अकेले ही आया , झुककर प्रणाम किया और बोला ----- " शरीर का रोग तो आपकी कृपा से दूर हो गया , अब चित का प्रबोधन कैसे हो ? "
बुद्ध ने कहा --- " अच्छा सोचो , अच्छा करो और अच्छे लोगों का संग करो l विचारों का संयम चित को शांति व संतोष देगा l " बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर अपने शरीर को शारीरिक व मानसिक द्रष्टि से स्वस्थ रखकर सेठ ने अपने जीवन को सार्थक किया l
आचार्य जी के अनुसार --- हमारा जीवन ही समय है , हमारा समय समाप्त होने पर जीवन ही समाप्त हो जायेगा l
जीवन में जो भी कार्य करने हैं वे इसी शरीर से संभव है l अत: जरुरी है कि शरीर स्वस्थ व रोगमुक्त रहे l एक कथा है ---- भगवान बुद्ध एक गाँव में ठहरे हुए थे l उनके दर्शन व सत्संग के लिए अनेक व्यक्ति आते थे l इसी क्रम में एक धनी व्यक्ति उनके दर्शन के लिए पहुंचा l l उसका शरीर भारी - भरकम था , सेवकों की मदद से कठिनाई से चल रहा था l झुक नहीं पा रहा था , अत: खड़े - खड़े अभिवादन कर बोला --- " भगवन ! मेरा शरीर अनेक व्याधियों का घर बन चुका है l रात को न तो नींद आ पाती है और न ही दिन में चैन से बैठ पाता हूँ l मुझे रोग मुक्ति का साधन बताने की कृपा करें l "
भगवान बुद्ध उसकी और करुणा भरी द्रष्टि से देखते रहे , फिर बोले ---- " भंते ! शारीरिक श्रम का अभाव , प्रचुर भोजन करने से उत्पन्न आलस्य , भोग व अनंत इच्छाओं की कामना ---- ये सब रोग पनपने के कारण हैं l जीभ पर नियंत्रण रखने , संयम पूर्वक सादा भोजन करने , शारीरिक श्रम करने , सत्कर्मों में रत रहने और अपनी इच्छाएं सीमित करने से ये रोग विदा होने लगते हैं l असीमित इच्छाएं और अपेक्षाएं शरीर को घुन की तरह जर्जर बना डालती हैं , इसलिए उन्हें त्यागो l "
सेठ को भगवान बुद्ध की बातों का मर्म समझ में आ गया और संयमित जीवन शैली अपनाने से कुछ ही दिनों उसने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया l अब वह पुन: भगवान बुद्ध मिलने आया l इस बार वह सेवकों बिना अकेले ही आया , झुककर प्रणाम किया और बोला ----- " शरीर का रोग तो आपकी कृपा से दूर हो गया , अब चित का प्रबोधन कैसे हो ? "
बुद्ध ने कहा --- " अच्छा सोचो , अच्छा करो और अच्छे लोगों का संग करो l विचारों का संयम चित को शांति व संतोष देगा l " बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर अपने शरीर को शारीरिक व मानसिक द्रष्टि से स्वस्थ रखकर सेठ ने अपने जीवन को सार्थक किया l
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