श्री भगवान ने गीता में कहा है ---- ' मैं काल हूँ l ' व्यक्तिगत जीवन में यदि कर्म अशुभ होता है तो काल रोग , शोक , पीड़ा व पतन बनकर प्रकट होता है l यदि सामूहिक जीवन में अशुभ कर्म होता है तो काल प्राकृतिक आपदाओं , युद्ध की विभीषिकाओं का रूप लेकर आता है l ऐसी स्थिति में महामारी , भूकंप , बाढ़ , सूखा , अकाल और ऐसे ही अनेक उपद्रव बन जाता है काल !
कर्म करना तो व्यक्ति के हाथ में है , लेकिन इनके परिणाम काल ही तय करता है l
काल का एक अर्थ मृत्यु भी है l कोई भी उससे बच नहीं पाता l
सूफी फकीर शेख सादी के वचन हैं ---- " बहुत समय पहले दजला के किनारे किसी एक खोपड़ी ने कुछ बातें एक राहगीर से कहीं थीं l " वह बोली थी ---- " ऐ मुसाफिर ! जरा होश में चल l मैं भी कभी भारी दबदबा रखती थी l मेरे ऊपर हीरे , मोती , मूंगों से जड़ा बेशकीमती ताज था l फतह मेरे पीछे - पीछे चली और मेरे पांव कभी जमीन पर न पड़ते थे l होश ही न था कि एक दिन सब कुछ खतम हो गया l पल भर में जीवन के सारे सपने विलीन हो गए l यथार्थ से तब रूबरू हुआ और पाया कि कीड़े मुझे खा रहे हैं और आज हर पाँव मुझे बेरहम ठोकर मारकर आगे निकल जाता
है l तू भी अपने कानों से गफलत की रुई निकाल ले , ताकि तुझे मुरदों की आवाज से उठने वाली नसीहत हासिल हो सके l "
कर्म करना तो व्यक्ति के हाथ में है , लेकिन इनके परिणाम काल ही तय करता है l
काल का एक अर्थ मृत्यु भी है l कोई भी उससे बच नहीं पाता l
सूफी फकीर शेख सादी के वचन हैं ---- " बहुत समय पहले दजला के किनारे किसी एक खोपड़ी ने कुछ बातें एक राहगीर से कहीं थीं l " वह बोली थी ---- " ऐ मुसाफिर ! जरा होश में चल l मैं भी कभी भारी दबदबा रखती थी l मेरे ऊपर हीरे , मोती , मूंगों से जड़ा बेशकीमती ताज था l फतह मेरे पीछे - पीछे चली और मेरे पांव कभी जमीन पर न पड़ते थे l होश ही न था कि एक दिन सब कुछ खतम हो गया l पल भर में जीवन के सारे सपने विलीन हो गए l यथार्थ से तब रूबरू हुआ और पाया कि कीड़े मुझे खा रहे हैं और आज हर पाँव मुझे बेरहम ठोकर मारकर आगे निकल जाता
है l तू भी अपने कानों से गफलत की रुई निकाल ले , ताकि तुझे मुरदों की आवाज से उठने वाली नसीहत हासिल हो सके l "
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