आनन्द भवन की अपार सम्पदा , कमला सी कमनीय पत्नी , पिता का विवेकपूर्ण स्नेह और फूल सी कोमल और सुन्दर इन्दिरा इन सबने मिलकर नेहरू जी को स्वर्गीय सुख प्रदान किया किन्तु अकेले भोगे जाने वाले सुख की अपेक्षा उन्हें करोड़ों लोगों की आजादी आवश्यक लगी l सब सुखोपभोग को तिलांजलि देकर वे कर्मक्षेत्र में आ डटे l
जिसके शरीर पर दिन भर में कितनी ही बार अलग - अलग कीमती पोशाक पहनी जातीं , वही जवाहर अब मोटी खादी पहनते l जिनके ऐश्वर्य - सुख को देखकर कई धनी मानी व्यक्तियों को ईर्ष्या होने लगती , वही नेहरू सीलन और बदबू भरी जेल की कोठरियों में जमीन पर सोने लगे l जिन्हे स्वादिष्ट भोजन मिलता था , वैभव विलास में पला राजकुमार कई दिनों तक उपवास करने लगा l दीखने में जमीन का बिस्तर , भूख - प्यास , जेल के कष्ट सब कुछ कितना असह्य कष्टकर लगता है , परन्तु देश की आजादी के लिए नेहरू जी ने इन्हे स्वेच्छा से वरण किया l
यह सब देख पिता मोतीलाल तड़प उठे , उन्होंने अपने पुत्र को लाख समझाया लेकिन वे न माने l आखिर पं. मोतीलाल भी उसी पथ के पथिक बन गए और बेटी इन्दिरा भी अपने पिता की अनुगामिनी बनी l
`देशभक्ति , लोक मंगल की कामना और कर्तव्य निष्ठा का उनका स्तर सदा इतना ऊँचा रहा कि व्यक्तिगत लोभ , मोह , स्वार्थ , द्वेष व अहंकार के प्रवेश की पहुँच वहां तक हो ही नहीं सकी l इन बुराइयों से वे कोसों दूर थे l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग में लिखते हैं --- ' जो लोग नेहरू को नास्तिक कहते और मानते हैं , वे भूल करते हैं l इतना जरूर था कि वे धर्म के आडम्बर और प्रदर्शन से सर्वथा दूर रहे l एकांत के क्षणों में गीता का अध्ययन और अध्यात्म चिंतन में रत , जीवन सुखों का राष्ट्र हित में त्याग , सेवा और परोपकार के लिए समर्पित व्यक्ति यदि नास्तिक है तो फिर इस दुनिया में आस्तिक व्यक्ति कहीं नहीं मिल सकता l
जिसके शरीर पर दिन भर में कितनी ही बार अलग - अलग कीमती पोशाक पहनी जातीं , वही जवाहर अब मोटी खादी पहनते l जिनके ऐश्वर्य - सुख को देखकर कई धनी मानी व्यक्तियों को ईर्ष्या होने लगती , वही नेहरू सीलन और बदबू भरी जेल की कोठरियों में जमीन पर सोने लगे l जिन्हे स्वादिष्ट भोजन मिलता था , वैभव विलास में पला राजकुमार कई दिनों तक उपवास करने लगा l दीखने में जमीन का बिस्तर , भूख - प्यास , जेल के कष्ट सब कुछ कितना असह्य कष्टकर लगता है , परन्तु देश की आजादी के लिए नेहरू जी ने इन्हे स्वेच्छा से वरण किया l
यह सब देख पिता मोतीलाल तड़प उठे , उन्होंने अपने पुत्र को लाख समझाया लेकिन वे न माने l आखिर पं. मोतीलाल भी उसी पथ के पथिक बन गए और बेटी इन्दिरा भी अपने पिता की अनुगामिनी बनी l
`देशभक्ति , लोक मंगल की कामना और कर्तव्य निष्ठा का उनका स्तर सदा इतना ऊँचा रहा कि व्यक्तिगत लोभ , मोह , स्वार्थ , द्वेष व अहंकार के प्रवेश की पहुँच वहां तक हो ही नहीं सकी l इन बुराइयों से वे कोसों दूर थे l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग में लिखते हैं --- ' जो लोग नेहरू को नास्तिक कहते और मानते हैं , वे भूल करते हैं l इतना जरूर था कि वे धर्म के आडम्बर और प्रदर्शन से सर्वथा दूर रहे l एकांत के क्षणों में गीता का अध्ययन और अध्यात्म चिंतन में रत , जीवन सुखों का राष्ट्र हित में त्याग , सेवा और परोपकार के लिए समर्पित व्यक्ति यदि नास्तिक है तो फिर इस दुनिया में आस्तिक व्यक्ति कहीं नहीं मिल सकता l
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