भारतीय संस्कृति में गाय का स्थान सबसे ऊँचा है l महाभारत में एक कथा है ----- यह कथा रघुकुल के राजा नहुष और महर्षि च्यवन की है जिसे भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुनाया था l
महर्षि च्यवन जलकल्प करने के लिए जल में समाधि लगाए बैठे थे l एक दिन कुछ मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियां पकड़ने के लिए जाल फेंका l जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी खिंचे चले आये l उन्हें देखकर मछुआरों ने उनसे क्षमा मांगी और कहा अनजाने में उनसे यह पाप हुआ , हमें आज्ञा दें कि हम आपकी क्या सेवा करें l
महर्षि ने कहा --- यदि ये मछलियां जियेंगी तो मैं भी जीवन धारण करूँगा , अन्यथा नहीं l ' यह सुनकर सारे मछुआरे राजा नहुष के पास गए और सारा वृतांत कह सुनाया l राजा नहुष तत्काल अपने मंत्रीगणों के साथ महर्षि के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले --- आज्ञा दीजिये मैं आपकी क्या सेवा करूँ l
महर्षि च्यवन ने कहा --- मेरा व मछलियों का मूल्य चुका दिया जाये l राजा नहुष ने उसी समय पुरोहित को आज्ञा दी कि मछुआरों को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दो l महर्षि के इनकार करने पर पुन: एक लाख , एक करोड़ , फिर आधा राज्य और अंत में पूरा राज्य देने को कहा l
महर्षि ने कहा --- आधा राज्य या पूरा राज्य भी मेरा मूल्य नहीं है l आप ऋषियों से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए l
तब ऋषियों ने कहा --- ' गाय अमूल्य है l गौधन ( गाय ) का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता l अत : आप महर्षि के मूल्य के रूप में एक - दो गौ दे दीजिए l राजा नहुष ने ऐसा ही किया , मछुआरों को एक गाय दी l तब महर्षि उठ गए और कहा --- हे राजन ! आपने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया , इस संसार में गाय के बराबर और और उससे उत्तम कोई धन नहीं है l
महर्षि च्यवन जलकल्प करने के लिए जल में समाधि लगाए बैठे थे l एक दिन कुछ मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियां पकड़ने के लिए जाल फेंका l जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी खिंचे चले आये l उन्हें देखकर मछुआरों ने उनसे क्षमा मांगी और कहा अनजाने में उनसे यह पाप हुआ , हमें आज्ञा दें कि हम आपकी क्या सेवा करें l
महर्षि ने कहा --- यदि ये मछलियां जियेंगी तो मैं भी जीवन धारण करूँगा , अन्यथा नहीं l ' यह सुनकर सारे मछुआरे राजा नहुष के पास गए और सारा वृतांत कह सुनाया l राजा नहुष तत्काल अपने मंत्रीगणों के साथ महर्षि के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले --- आज्ञा दीजिये मैं आपकी क्या सेवा करूँ l
महर्षि च्यवन ने कहा --- मेरा व मछलियों का मूल्य चुका दिया जाये l राजा नहुष ने उसी समय पुरोहित को आज्ञा दी कि मछुआरों को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दो l महर्षि के इनकार करने पर पुन: एक लाख , एक करोड़ , फिर आधा राज्य और अंत में पूरा राज्य देने को कहा l
महर्षि ने कहा --- आधा राज्य या पूरा राज्य भी मेरा मूल्य नहीं है l आप ऋषियों से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए l
तब ऋषियों ने कहा --- ' गाय अमूल्य है l गौधन ( गाय ) का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता l अत : आप महर्षि के मूल्य के रूप में एक - दो गौ दे दीजिए l राजा नहुष ने ऐसा ही किया , मछुआरों को एक गाय दी l तब महर्षि उठ गए और कहा --- हे राजन ! आपने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया , इस संसार में गाय के बराबर और और उससे उत्तम कोई धन नहीं है l
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