श्रीकृष्ण को अपनाने के बाद संकटों में ग्रस्त मीराबाई मानसिक क्लेश से गुजर रहीं थीं , उन्होंने गोस्वामीजी को पत्र लिखा l गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनकी दुविधा समझी और अपनी सलाह एक पंक्ति के माध्यम से लिख दी l ' विनय पत्रिका ' की यह पंक्ति हम सबके लिए जीवन संजीवनी के समान है l गोस्वामी जी लिखते हैं ----
" जाके प्रिय न राम वैदेही l
तजिये ताहि कोटि बैरी सम , जद्दपि परम सनेही l l
तज्यो पिता प्रह्लाद , विभीषण बंधु , भरत महतारी l
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि , भये मुद मंगलकारी l l
जाके प्रिय न राम वैदेही l "
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जब - जब इसे मैं पढ़ता हूँ तो हिम्मत और ताकत से भर जाता हूँ l भावार्थ यह है कि -- चाहे कोई कितना ही प्रिय हो , यदि वह भगवान के कार्य में , उनसे मिलने की हमारी साधना में बाधक हो तो उसे छोड़ देना चाहिए l प्रह्लाद ने पिता को त्यागा , विभीषण ने भाई रावण से संबंध - विच्छेद किया , भरत ने अपनी माँ को त्यागा , गलत परामर्श देने के कारण बलि ने गुरु शुक्राचार्य को को छोड़ा l व्रज में गोपिकाओं ने अपने सगे - संबंधियों को छोड़कर श्रीकृष्ण का वरण किया l हम भी कभी राम को न भूलें l कोई भी आकर्षक प्रस्ताव चाहे वह कितने ही तुरंत लाभ का हो , यदि भगवान के कार्य में बाधक हो तो उसे अपना सबसे बड़ा वैरी मानकर छोड़ देना चाहिए l
" जाके प्रिय न राम वैदेही l
तजिये ताहि कोटि बैरी सम , जद्दपि परम सनेही l l
तज्यो पिता प्रह्लाद , विभीषण बंधु , भरत महतारी l
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि , भये मुद मंगलकारी l l
जाके प्रिय न राम वैदेही l "
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जब - जब इसे मैं पढ़ता हूँ तो हिम्मत और ताकत से भर जाता हूँ l भावार्थ यह है कि -- चाहे कोई कितना ही प्रिय हो , यदि वह भगवान के कार्य में , उनसे मिलने की हमारी साधना में बाधक हो तो उसे छोड़ देना चाहिए l प्रह्लाद ने पिता को त्यागा , विभीषण ने भाई रावण से संबंध - विच्छेद किया , भरत ने अपनी माँ को त्यागा , गलत परामर्श देने के कारण बलि ने गुरु शुक्राचार्य को को छोड़ा l व्रज में गोपिकाओं ने अपने सगे - संबंधियों को छोड़कर श्रीकृष्ण का वरण किया l हम भी कभी राम को न भूलें l कोई भी आकर्षक प्रस्ताव चाहे वह कितने ही तुरंत लाभ का हो , यदि भगवान के कार्य में बाधक हो तो उसे अपना सबसे बड़ा वैरी मानकर छोड़ देना चाहिए l
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