पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' गुणवान होना बहुत अच्छी बात है , गुणों से ही संसार में यश फैलता है l गुणों की अधिकता से कुशलता और सफलता दोनों ही खिंची चली आती हैं l लेकिन इन गुणों के साथ यदि व्यक्ति अभिमानी है , अहंकारी है तो ये अहंकार उसके समस्त गुणों और विशेषताओं पर ग्रहण लगा देता है l ऐसा व्यक्ति दैवी प्रयोजनों के अनुकूल नहीं रह जाता l '
रावण से युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने ब्रह्माजी द्वारा सुझाई गई विधि से चंडी देवी का पूजन किया l देवी प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
उधर रावण ने भी अमरता के लोभ से और विजय के लिए चंडी पाठ प्रारम्भ किया l रावण विद्वान् , तपस्वी होने के साथ अहंकारी था l ' अखण्ड ज्योति ' में लेख है ----- एक ब्राह्मण बालक वहां पर पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा भक्ति भाव से कर रहा था l चंडी यज्ञ की पवित्र वेदी की स्वच्छता , सफाई , पाठ में प्रयुक्त सामग्री का यथास्थान वितरण , पंडितों की भोजन व्यवस्था , उनकी निजी सेवा तक वह कटिबद्ध रहता था l पता नहीं वह बालक कब सोता और जागता था , जब भी देखा वह सेवा कार्य में निरत रहता था l ब्राह्मणों ने इस बालक की निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा -- - " हे ब्राह्मण देवताओं ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरा एक सुझाव मानने की कृपा करें , इस यज्ञ में प्रयुक्त मन्त्र के एक शब्द मूर्तिहरिणी के
' ह ' अक्षर के स्थान पर ' क ' उच्चारित किया जाये l " ब्राह्मण इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर ' मूर्तिकरिणी ' कह के आहुतियाँ प्रदान करने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का तात्पर्य है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ है प्राणियों को पीड़ित करने वाली l इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l यह ब्राह्मण बालक कोई और नहीं , बल्कि राम भक्त हनुमान थे , जिन्होंने मन्त्र के ' ह ' की जगह ' क ' कहलवाकर यज्ञ की दिशा ही बदल दी l
रावण अहंकारी था , उसमे छल - कपट था इस कारण दैवी कृपा से वंचित रह गया l
रावण से युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने ब्रह्माजी द्वारा सुझाई गई विधि से चंडी देवी का पूजन किया l देवी प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
उधर रावण ने भी अमरता के लोभ से और विजय के लिए चंडी पाठ प्रारम्भ किया l रावण विद्वान् , तपस्वी होने के साथ अहंकारी था l ' अखण्ड ज्योति ' में लेख है ----- एक ब्राह्मण बालक वहां पर पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा भक्ति भाव से कर रहा था l चंडी यज्ञ की पवित्र वेदी की स्वच्छता , सफाई , पाठ में प्रयुक्त सामग्री का यथास्थान वितरण , पंडितों की भोजन व्यवस्था , उनकी निजी सेवा तक वह कटिबद्ध रहता था l पता नहीं वह बालक कब सोता और जागता था , जब भी देखा वह सेवा कार्य में निरत रहता था l ब्राह्मणों ने इस बालक की निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा -- - " हे ब्राह्मण देवताओं ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरा एक सुझाव मानने की कृपा करें , इस यज्ञ में प्रयुक्त मन्त्र के एक शब्द मूर्तिहरिणी के
' ह ' अक्षर के स्थान पर ' क ' उच्चारित किया जाये l " ब्राह्मण इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर ' मूर्तिकरिणी ' कह के आहुतियाँ प्रदान करने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का तात्पर्य है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ है प्राणियों को पीड़ित करने वाली l इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l यह ब्राह्मण बालक कोई और नहीं , बल्कि राम भक्त हनुमान थे , जिन्होंने मन्त्र के ' ह ' की जगह ' क ' कहलवाकर यज्ञ की दिशा ही बदल दी l
रावण अहंकारी था , उसमे छल - कपट था इस कारण दैवी कृपा से वंचित रह गया l
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