पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने एक लेख में लिखा था ---- ' हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? आज के दौर में राजनीति से कहीं अधिक आवश्यक समाजसेवा है l समाज श्रेष्ठ होगा तो सरकारें स्वयं ही श्रेष्ठ बन जाएँगी l '
आचार्य श्री ने आगे लिखा ---- " वर्तमान में चुनौती स्वराज्य को सुराज्य में बदलने की है l इसके लिए समाज की जड़ों में पानी देना होगा l अच्छे व्यक्तित्व गढ़ने होंगे , जो न केवल राजनीति को दिशा दें , बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीय व्यवस्था में अपना सार्थक योगदान प्रस्तुत करें l यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि लोग सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश तो करना चाहते हैं , पर उनका दृष्टिकोण अति संकीर्ण होता है l लोग राजनीति को ही सब कुछ समझ लेते हैं l यही नहीं अपनी जीत के लिए हर संभव छल - बल और कौशल का प्रयोग भी करते हैं l कभी - कभी तो ये मतदाताओं में मतिभ्रम पैदा कर के उपयुक्त प्रत्याशियों का मार्ग भी अवरुद्ध कर देते हैं l "
तुलसीदास जी ने लिखा है --- काला नाग चमकीला होता है , पर विष से भरा होता है l माँ अपने बच्चे को उससे बचाती है कि कहीं वह उसे देखकर उससे खेलने न लगे l राजनीति भी कुछ इसी प्रकार की है l उसमे मद है , अहंकार के विस्तार हेतु परिपूर्ण गुंजाइश है l अत : वह आकर्षित करती है l
आचार्य श्री कहते हैं --- " सामाजिक , नैतिक आंदोलन ही इस आकर्षण से बचकर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं l हजार वर्ष की गुलामी से अपना सब कुछ खो बैठने वाले समाज में फैली हुई अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक , बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं , बल्कि सामाजिक सत्प्रवृत्तियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है l जांत - पाँत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे - बिखरे समाज को एकता - समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है l "
आचार्य श्री ने आगे लिखा ---- " वर्तमान में चुनौती स्वराज्य को सुराज्य में बदलने की है l इसके लिए समाज की जड़ों में पानी देना होगा l अच्छे व्यक्तित्व गढ़ने होंगे , जो न केवल राजनीति को दिशा दें , बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीय व्यवस्था में अपना सार्थक योगदान प्रस्तुत करें l यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि लोग सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश तो करना चाहते हैं , पर उनका दृष्टिकोण अति संकीर्ण होता है l लोग राजनीति को ही सब कुछ समझ लेते हैं l यही नहीं अपनी जीत के लिए हर संभव छल - बल और कौशल का प्रयोग भी करते हैं l कभी - कभी तो ये मतदाताओं में मतिभ्रम पैदा कर के उपयुक्त प्रत्याशियों का मार्ग भी अवरुद्ध कर देते हैं l "
तुलसीदास जी ने लिखा है --- काला नाग चमकीला होता है , पर विष से भरा होता है l माँ अपने बच्चे को उससे बचाती है कि कहीं वह उसे देखकर उससे खेलने न लगे l राजनीति भी कुछ इसी प्रकार की है l उसमे मद है , अहंकार के विस्तार हेतु परिपूर्ण गुंजाइश है l अत : वह आकर्षित करती है l
आचार्य श्री कहते हैं --- " सामाजिक , नैतिक आंदोलन ही इस आकर्षण से बचकर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं l हजार वर्ष की गुलामी से अपना सब कुछ खो बैठने वाले समाज में फैली हुई अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक , बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं , बल्कि सामाजिक सत्प्रवृत्तियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है l जांत - पाँत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे - बिखरे समाज को एकता - समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है l "
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