रामकृष्ण परमहंस कहते हैं --- ' ईश्वर दो बार हँसते हैं l एक बार उस समय हँसते हैं जब दो भाई जमीन बांटते हैं और रस्सी से नापकर कहते हैं --- 'इस ओर की जमीन मेरी है और उस ओर की तुम्हारी l " ईश्वर यह सोचकर हँसते हैं कि संसार है तो मेरा और ये लोग थोड़ी सी मिटटी लेकर इस ओर की मेरी , और उस ओर की तुम्हारी कर रहे हैं l
फिर ईश्वर एक बार और हँसते हैं l बच्चे की बीमारी बढ़ी हुई है , उसकी माँ रो रही है l वैद्द्य आकर कहता है --- " डरने की क्या बात है , माँ , मैं अच्छा कर दूंगा l " वैद्द्य नहीं जानता कि यदि ईश्वर मारना चाहे तो किस की शक्ति है , जो अच्छा कर सके
फिर ईश्वर एक बार और हँसते हैं l बच्चे की बीमारी बढ़ी हुई है , उसकी माँ रो रही है l वैद्द्य आकर कहता है --- " डरने की क्या बात है , माँ , मैं अच्छा कर दूंगा l " वैद्द्य नहीं जानता कि यदि ईश्वर मारना चाहे तो किस की शक्ति है , जो अच्छा कर सके
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