हम पिछले दो हजार वर्ष से अज्ञान और अंधकार के युग में रहते चले आये हैं l हम पर अनेक विदेशी आक्रमण हुए l मुट्ठीभर अंग्रेजों ने भारत जैसे विशाल देश को अपना गुलाम बना लिया l ऐसा कैसे हुआ ? पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व ' में लिखते हैं ---- ' हमारा जीवन दर्शन उलट गया , पुरुषार्थवादी भारतीय दर्शन भाग्यवादी बन गया l हम कर्मठता को तिलांजलि देकर मानसिक दासता के जंजाल में जकड़ गए l संभवत: इस मानसिक अध:पतन के पीछे उन लोगों का हाथ रहा जो हमें देर तक शोषित , पतित और पराधीन देखना चाहते थे l आक्रमणकारियों और अत्याचारियों ने अपने अन्याय से पीड़ित लोगों में प्रतिकार और विद्रोह की आग न भड़कने लगे , इसके लिए भाग्यवादी विचारधारा का प्रचार किया , और इस ' भाग्यवाद ' को तथा कथित पंडितों और विद्वानों के माध्यम से प्रचलित कराया ताकि भारत जैसे धार्मिक देश की श्रद्धालु जनता उसे आसानी से स्वीकार कर ले l '
इस विचारधारा को तथाकथित ----- स्वार्थी लोगों ने जनता के मन - मस्तिष्क में भर दिया कि जिस पर अत्याचार हुआ है , वह अवश्य पूर्व जन्म का पापी है , उसने पहले सताया होगा , इसीलिए दंड मिल रहा है l और जिसने अनीति पूर्वक सुख - साधन जुटा लिए हैं , दूसरों का शोषण कर के लाभ कमाया है , वह पूर्व जन्म का पुण्यात्मा है , उसके पुण्यों का उदय हुआ है l अनीति के प्रतिरोध का उपाय वे विद्रोह न बताकर यह कहते थे कि ईश्वर की भक्ति करो , भजन - कीर्तन करो l ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होंगे और कष्ट कम हो जायेंगे l
जहाँ प्रतिरोध की संभावना न हो वहां हर बुराई मनमाने ढंग से फलती - फूलती रह सकती है l जो लोग किसी वर्ग को पिछड़ा रखकर उनके शोषण का लाभ उठाना चाहते हैं उनके लिए यह भाग्यवादी विचारधारा बहुत लाभकर सिद्ध हो रही थी और आज भी हो रही है l अछूतों का , दलितों का , नारी जाति का युगों से शोषण इसी भाग्यवाद के विचार के कारण हो रहा है l
आचार्य जी लिखते हैं ----- ' हमें मानसिक आलस्य को छोड़कर वस्तु - स्थिति को परखना होगा l पूजा - उपासना के अतिरिक्त विवेकपूर्ण सत्प्रयत्न और उत्साहपूर्ण परिश्रम से बुरी परिस्थितियों को बदलकर आशाजनक शुभ परिस्थितियां उत्पन्न की जा सकती हैं l '
इस विचारधारा को तथाकथित ----- स्वार्थी लोगों ने जनता के मन - मस्तिष्क में भर दिया कि जिस पर अत्याचार हुआ है , वह अवश्य पूर्व जन्म का पापी है , उसने पहले सताया होगा , इसीलिए दंड मिल रहा है l और जिसने अनीति पूर्वक सुख - साधन जुटा लिए हैं , दूसरों का शोषण कर के लाभ कमाया है , वह पूर्व जन्म का पुण्यात्मा है , उसके पुण्यों का उदय हुआ है l अनीति के प्रतिरोध का उपाय वे विद्रोह न बताकर यह कहते थे कि ईश्वर की भक्ति करो , भजन - कीर्तन करो l ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होंगे और कष्ट कम हो जायेंगे l
जहाँ प्रतिरोध की संभावना न हो वहां हर बुराई मनमाने ढंग से फलती - फूलती रह सकती है l जो लोग किसी वर्ग को पिछड़ा रखकर उनके शोषण का लाभ उठाना चाहते हैं उनके लिए यह भाग्यवादी विचारधारा बहुत लाभकर सिद्ध हो रही थी और आज भी हो रही है l अछूतों का , दलितों का , नारी जाति का युगों से शोषण इसी भाग्यवाद के विचार के कारण हो रहा है l
आचार्य जी लिखते हैं ----- ' हमें मानसिक आलस्य को छोड़कर वस्तु - स्थिति को परखना होगा l पूजा - उपासना के अतिरिक्त विवेकपूर्ण सत्प्रयत्न और उत्साहपूर्ण परिश्रम से बुरी परिस्थितियों को बदलकर आशाजनक शुभ परिस्थितियां उत्पन्न की जा सकती हैं l '
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