भगवान ने मनुष्यों को उन सब विशेषताओं से परिपूर्ण बनाकर इस धरती पर भेजा है जिनके आधार पर वह अपना उद्धार - उत्थान बड़ी सरलता से कर सकता है l लेकिन मनुष्य अपनी आधी शक्तियों को शरीर यात्रा में लगाता है और आधी शक्ति निरर्थक एवं अनर्थकारी विचारों एवं कार्यों में नष्ट कर देता है l सद्विचारों और सत्कार्यों के लिए उसके पास समय ही नहीं बचता l इस प्रकार गुजारे के अतिरिक्त बचा हुआ समय औसत मनुष्य संसार के लिए संकट उत्पन्न करने में ही लगा देता है l
यदि यह स्थिति बदल जाये और लोग -- राजा , प्रजा , पुलिस , फौज , कर्मचारी आदि सभी लोग अपनी विचारणा एवं कार्य पद्धति रचनात्मक दिशा में लगाने लगें तो कुछ ही समय में चमत्कार हो सकता है l यदि लोगों की शक्ति शिक्षा , स्वास्थ्य , लोक निर्माण आदि सकारात्मक कार्यों में लग जाये , हथियार बनाने में लगा हुआ धन , संसार में गरीबी , भूख और बेरोजगारी दूर करने में लग जाये तो इस धरती पर सुख - शान्ति का वातावरण बनने में देर नहीं लगेगी l
यह सब तभी संभव है जब लोग सच्चे अर्थों में आस्तिक बने l ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत को स्वीकार करें -- हम सब एक ही मोतियों के हार में गुँथे हुए हैं l
यदि यह स्थिति बदल जाये और लोग -- राजा , प्रजा , पुलिस , फौज , कर्मचारी आदि सभी लोग अपनी विचारणा एवं कार्य पद्धति रचनात्मक दिशा में लगाने लगें तो कुछ ही समय में चमत्कार हो सकता है l यदि लोगों की शक्ति शिक्षा , स्वास्थ्य , लोक निर्माण आदि सकारात्मक कार्यों में लग जाये , हथियार बनाने में लगा हुआ धन , संसार में गरीबी , भूख और बेरोजगारी दूर करने में लग जाये तो इस धरती पर सुख - शान्ति का वातावरण बनने में देर नहीं लगेगी l
यह सब तभी संभव है जब लोग सच्चे अर्थों में आस्तिक बने l ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत को स्वीकार करें -- हम सब एक ही मोतियों के हार में गुँथे हुए हैं l
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