' महाभारत तो होना ही था , क्योंकि दुर्योधन की अनीति और अन्याय को देखकर उस समय के शिखर पुरुष भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य खामोश रहे l जिस समय भगवान श्रीकृष्ण दूत बनकर सन्धि करने को हस्तिनापुर जा रहे थे , द्रोपदी ने उन्हें देखा तो कहा ---- " भैया ! तुम उनसे सन्धि करने जा तो रहे हो किन्तु मेरे बालों को न भूल जाना , इन्ही बालों को खींचकर उन्होंने एक अबला का अपमान किया था l "
तब श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया --- " हे द्रोपदी ! चाहे हिमालय पर्वत चलने लग पड़े , पृथ्वी सौ टुकड़े हो जाये और आकाश नक्षत्रों सहित गिर पड़े , किन्तु मेरा वचन असत्य नहीं हो सकता , मैं उन आततायियों से बदला लेकर रहूँगा l " श्रीकृष्ण ने जैसा कहा वैसा कर के दिखाया और दुनिया के सामने एक ज्वलंत आदर्श रख दिया l जब युद्ध के मैदान में अपने संबंधियों को देख अर्जुन को मोह हो गया और वह युद्ध करने से मना करने लगा तब भगवान ने उसे गीता का उपदेश दिया कि ---- हृदय की दुर्बलता और क्षुद्रता को छोड़कर उठो और शत्रुओं से जाकर लड़ो , यदि तुम क्षात्र धर्म का पालन नहीं करोगे तो पातकी कहलाओगे l संसार में प्रतिष्ठित व्यक्ति की निंदा मृत्यु से भी भयंकर है l "
वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में पं. श्रीराम शर्मा वाङ्मय ' संस्कृति - संजीवनी श्रीमद भागवत एवं गीता ' में लिखते हैं ---- ' हिन्दुस्तान की वीर जाति का दुर्भाग्य है , उसने स्वदेशाभिमान और वीरता में विश्वास के स्थान पर केवल मात्र अपने ही भाइयों का खून चूसकर पूंजी इकट्ठी करना सीख लिया है l ये भावनाएं ही उनमे कायरता भर रही हैं l निरंतर सुख निद्रा में सोये रहने के कारण इनमे देश भक्ति और धीरता के भाव ही जाते रहे हैं l देश की चिंता के स्थान पर इन्हे अपनी पूंजी की चिंता लग पड़ी है l विपत्ति काल में अपनी अन्याय से कमाई हुई पूंजी के साथ कायरों की तरह लुक छिप जाना ही इसने अपना आदर्श समझ लिया है l इस बुजदिली को जन्म देने वाले अधिकांश पूंजीपति हैं जिन्होंने गीता के पवित्र सिद्धांतों को ठुकरा कर समय से अनुचित लाभ उठाया है और देश को हर संभव उपाय से चूस - चूस कर अस्थि शेष कर डाला है l
आजकल देश में जितनी अशांति है उसका मुख्य कारण व्यक्तियों का स्वार्थ और दुर्बलता है और दूसरी और हमारे ही भाई ' पैसा गुरुणां गुरु ' वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं l '
तब श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया --- " हे द्रोपदी ! चाहे हिमालय पर्वत चलने लग पड़े , पृथ्वी सौ टुकड़े हो जाये और आकाश नक्षत्रों सहित गिर पड़े , किन्तु मेरा वचन असत्य नहीं हो सकता , मैं उन आततायियों से बदला लेकर रहूँगा l " श्रीकृष्ण ने जैसा कहा वैसा कर के दिखाया और दुनिया के सामने एक ज्वलंत आदर्श रख दिया l जब युद्ध के मैदान में अपने संबंधियों को देख अर्जुन को मोह हो गया और वह युद्ध करने से मना करने लगा तब भगवान ने उसे गीता का उपदेश दिया कि ---- हृदय की दुर्बलता और क्षुद्रता को छोड़कर उठो और शत्रुओं से जाकर लड़ो , यदि तुम क्षात्र धर्म का पालन नहीं करोगे तो पातकी कहलाओगे l संसार में प्रतिष्ठित व्यक्ति की निंदा मृत्यु से भी भयंकर है l "
वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में पं. श्रीराम शर्मा वाङ्मय ' संस्कृति - संजीवनी श्रीमद भागवत एवं गीता ' में लिखते हैं ---- ' हिन्दुस्तान की वीर जाति का दुर्भाग्य है , उसने स्वदेशाभिमान और वीरता में विश्वास के स्थान पर केवल मात्र अपने ही भाइयों का खून चूसकर पूंजी इकट्ठी करना सीख लिया है l ये भावनाएं ही उनमे कायरता भर रही हैं l निरंतर सुख निद्रा में सोये रहने के कारण इनमे देश भक्ति और धीरता के भाव ही जाते रहे हैं l देश की चिंता के स्थान पर इन्हे अपनी पूंजी की चिंता लग पड़ी है l विपत्ति काल में अपनी अन्याय से कमाई हुई पूंजी के साथ कायरों की तरह लुक छिप जाना ही इसने अपना आदर्श समझ लिया है l इस बुजदिली को जन्म देने वाले अधिकांश पूंजीपति हैं जिन्होंने गीता के पवित्र सिद्धांतों को ठुकरा कर समय से अनुचित लाभ उठाया है और देश को हर संभव उपाय से चूस - चूस कर अस्थि शेष कर डाला है l
आजकल देश में जितनी अशांति है उसका मुख्य कारण व्यक्तियों का स्वार्थ और दुर्बलता है और दूसरी और हमारे ही भाई ' पैसा गुरुणां गुरु ' वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं l '
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