श्रीमद भागवत कथा शुकदेव जी ने राजा परीक्षित की सुनाई l इस कथा में प्रसंग है --- कंस की चचेरी बहन देवकी का विवाह , वसुदेव से हुआ , तब विदा के समय स्नेहवश कंस स्वयं रथ हाँक रहा था l रास्ते में आकाशवाणी हुई कि तू जिसका रथ हाँक रहा है , उसके आठवें पुत्र द्वारा ही तेरा वध होगा l यह सुनकर कंस तलवार लेकर देवकी को मारने दौड़ा l तब वसुदेव ने उसे समझाया --- मृत्यु तो सब की निश्चित होती है , तुम अपनी बहन , जो तुम्हारी पुत्री जैसी है , उसे मारने का कलंक क्यों अपने ऊपर ले रहे हो l उन्होंने कंस को बहुत समझाया लेकिन वह माना नहीं l नीति कहती है ---भाग्य के नाम पर जो अपने , प्रयास और पुरुषार्थ को छोड़ बैठते हैं वे दोष के , पाप के भागी होते हैं , इसलिए किसी भी परिस्थिति में से मार्ग निकालने का प्रयत्न करना चाहिए l ' ऐसा सोचकर वसुदेव ने कहा --- आपको देवकी के पुत्रों से खतरा है l मैं इसके पुत्र होते ही आपको सौंप दूंगा l अपने मंत्रियों की सलाह से उसने देवकी और वसुदेव को कैद कर लिया और उसके सभी पुत्रों को मारता गया l आठवें पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ l सब कुछ ईश्वर की लीला थी , वसुदेव कृष्णजी को लेकर गोकुल गए , वहां यशोदा मैया के पास उन्हें सुला दिया और उनकी नवजात कन्या को लेकर बंदीगृह में वापस आ गए l जब पहरेदारों ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी तो कंस को सूचना दी l कंस भागता हुआ आया ( कोई कितना भी ताकतवर हो मृत्यु से डरता है ) और देवकी की गोद से कन्या को छीनकर उसे चट्टान पर पटक दिया l वह कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और कहा --- अरे मूर्ख ! तुझे मारने वाला तो कहीं और पैदा हो चुका है l
अब कंस ने यह सुनकर अपने मंत्रियों को सलाह के लिए बुलाया l शुकदेव जी कहते हैं ---- एक तो कंस बुद्धि स्वयं भ्रष्ट थी , फिर उसे मंत्री ऐसे मिले जो एक से बढ़कर एक दुष्ट थे l शुकदेव जी कहते हैं --- यदि हमारा विवेक जाग्रत नहीं है तो दूसरों की सलाह हमें भटका सकती है l
मंत्रियों की सलाह से कंस ने सबने मिलकर निर्णय किया कि जहाँ भी सत्प्रवृत्तियाँ होंगी , अच्छे कार्य होंगे उन्हें नष्ट कर देंगे और सभी नवजात शिशुओं की हत्या करने की योजना बनाई l
राक्षसों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया , सब जगह त्राहि - त्राहि मच गई l
निरपराध को सताना , श्रेष्ठता को मिटाना पतन का कारण है l कृष्णजी के हाथों कंस का वध हुआ l
अब कंस ने यह सुनकर अपने मंत्रियों को सलाह के लिए बुलाया l शुकदेव जी कहते हैं ---- एक तो कंस बुद्धि स्वयं भ्रष्ट थी , फिर उसे मंत्री ऐसे मिले जो एक से बढ़कर एक दुष्ट थे l शुकदेव जी कहते हैं --- यदि हमारा विवेक जाग्रत नहीं है तो दूसरों की सलाह हमें भटका सकती है l
मंत्रियों की सलाह से कंस ने सबने मिलकर निर्णय किया कि जहाँ भी सत्प्रवृत्तियाँ होंगी , अच्छे कार्य होंगे उन्हें नष्ट कर देंगे और सभी नवजात शिशुओं की हत्या करने की योजना बनाई l
राक्षसों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया , सब जगह त्राहि - त्राहि मच गई l
निरपराध को सताना , श्रेष्ठता को मिटाना पतन का कारण है l कृष्णजी के हाथों कंस का वध हुआ l
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