ईश्वर चाहते हैं कि हम ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत के अनुसार स्वयं भी सुख पूर्वक जीवन यापन करें और दूसरों को भी जीने दें l किन्तु जब हम मोह - वश इस व्यवस्था को भंग कर अपने और दूसरों के लिए पतन और पीड़ा का सृजन करते हैं तब अपनी सृष्टि व्यवस्था में संतुलन स्थापित करने के लिए प्रभु अवतरित होते हैं l
महाभारत में प्रसंग है --- जब भगवान कृष्ण कौरव - पांडवों में सन्धि के लिए हस्तिनापुर पहुंचे तो उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा कि आप पांडवों को उनका न्यायोचित अधिकार प्रदान कर इस भयंकर युद्ध को टालिए l तब धृतराष्ट्र ने कहा --- मैंने और गांधारी , भीष्म , द्रोणाचार्य , विदुर सभी ने उसे बहुत समझाया , वह बहुत हठी व दुष्ट है , आप ही उसे समझाने का प्रयास करें l '
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया कि ज्यादा लोभ अच्छा नहीं है , तुम्हे श्रेष्ठ पुरुषों जैसा आचरण करना चाहिए l दुर्योधन ने किसी की बात नहीं मानी और कहा कि मैं सुई की नोक बराबर भूमि भी पांडवों को नहीं दे सकता। फिर सभा से उठकर चला गया l तब श्रीकृष्ण ने भीष्म आदि को संबोधित करते हुए कहा ---- दुर्योधन किसी की बात मानता ही नहीं , अब कुरुवंश का हित इसी में है कि इस पर बलपूर्वक नियंत्रण कर इसे कैद कर लिया जाये तभी यह भयंकर युद्ध रुक सकता है l जिस तरह शरीर में पनपने वाले विषैले फोड़े को माँ बेरहमी से निकलवा देती है , ताकि उसके बच्चे का भविष्य सुखमय हो सके उसी प्रकार दुष्ट को कुल , समाज व राष्ट्र की भलाई के लिए रास्ते से हटा देना चाहिए l दुष्टता का प्रतिरोध भी ईश्वरीय कार्य का ही एक अंग है l
धृतराष्ट्र तो मोह में अंधे थे , भीष्म प्रतिज्ञा से विवश थे , कुछ न कर सके l उलटे दुर्योधन ही अपने मंत्रियों की सलाह से कृष्ण को बंदी बनाने चला l तब भगवान ने अपना विश्वरूप दिखाया l
दुर्योधन के अहंकार में पूरा कुरुवंश का अंत हो गया l
महाभारत में प्रसंग है --- जब भगवान कृष्ण कौरव - पांडवों में सन्धि के लिए हस्तिनापुर पहुंचे तो उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा कि आप पांडवों को उनका न्यायोचित अधिकार प्रदान कर इस भयंकर युद्ध को टालिए l तब धृतराष्ट्र ने कहा --- मैंने और गांधारी , भीष्म , द्रोणाचार्य , विदुर सभी ने उसे बहुत समझाया , वह बहुत हठी व दुष्ट है , आप ही उसे समझाने का प्रयास करें l '
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया कि ज्यादा लोभ अच्छा नहीं है , तुम्हे श्रेष्ठ पुरुषों जैसा आचरण करना चाहिए l दुर्योधन ने किसी की बात नहीं मानी और कहा कि मैं सुई की नोक बराबर भूमि भी पांडवों को नहीं दे सकता। फिर सभा से उठकर चला गया l तब श्रीकृष्ण ने भीष्म आदि को संबोधित करते हुए कहा ---- दुर्योधन किसी की बात मानता ही नहीं , अब कुरुवंश का हित इसी में है कि इस पर बलपूर्वक नियंत्रण कर इसे कैद कर लिया जाये तभी यह भयंकर युद्ध रुक सकता है l जिस तरह शरीर में पनपने वाले विषैले फोड़े को माँ बेरहमी से निकलवा देती है , ताकि उसके बच्चे का भविष्य सुखमय हो सके उसी प्रकार दुष्ट को कुल , समाज व राष्ट्र की भलाई के लिए रास्ते से हटा देना चाहिए l दुष्टता का प्रतिरोध भी ईश्वरीय कार्य का ही एक अंग है l
धृतराष्ट्र तो मोह में अंधे थे , भीष्म प्रतिज्ञा से विवश थे , कुछ न कर सके l उलटे दुर्योधन ही अपने मंत्रियों की सलाह से कृष्ण को बंदी बनाने चला l तब भगवान ने अपना विश्वरूप दिखाया l
दुर्योधन के अहंकार में पूरा कुरुवंश का अंत हो गया l
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