भारतीय संस्कृति सनातन और शाश्वत है और इस संस्कृति का संबंध संवेदना से है l भारत पर हजारों वर्षों से बर्बर एवं भीषण आक्रमण होते रहे हैं , तमाम बर्बर जातियों ने भारतीय संस्कृति को मिटाकर अपने में मिलाने का अथक प्रयास किया l अपना देश - हजारों वर्षों से एक के बाद एक विदेशी सत्ताओं की गुलामी में भी रहा परन्तु इन सब के बावजूद भारतीय संस्कृति न केवल अक्षुण्ण रही , वरन नित - निरंतर प्रगति के नए सोपानों को प्राप्त करती रही l
लेकिन अब इस संस्कृति के मूल तत्व ' संवेदना ' को ही मिटाने के प्रयास किये जा रहे हैं l नशा , मांसाहार , अश्लील साहित्य , आपराधिक और अश्लील फ़िल्में --- ये सब हृदय की संवेदना को सोखकर व्यक्ति को मनुष्य से पिशाच बना देते हैं l गुलामी के काल को , विदेशी आक्रमणकारियों को वर्तमान में दोष देना व्यर्थ है , आज नारी जाति पर अत्याचार देश के ही लोग कर रहे हैं l अत्याचार और अन्याय होते देख मौन रहना , मूक सहमति है l
नारी जाति पर ये अमानुषिक अत्याचार इस काल में संस्कृति को कलंकित करने वाली अमानुषिक घटनाएं हैं l समाज के जिम्मेदार नागरिकों का यह कर्तव्य है कि अपनी कमजोरियों से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखें l
लेकिन अब इस संस्कृति के मूल तत्व ' संवेदना ' को ही मिटाने के प्रयास किये जा रहे हैं l नशा , मांसाहार , अश्लील साहित्य , आपराधिक और अश्लील फ़िल्में --- ये सब हृदय की संवेदना को सोखकर व्यक्ति को मनुष्य से पिशाच बना देते हैं l गुलामी के काल को , विदेशी आक्रमणकारियों को वर्तमान में दोष देना व्यर्थ है , आज नारी जाति पर अत्याचार देश के ही लोग कर रहे हैं l अत्याचार और अन्याय होते देख मौन रहना , मूक सहमति है l
नारी जाति पर ये अमानुषिक अत्याचार इस काल में संस्कृति को कलंकित करने वाली अमानुषिक घटनाएं हैं l समाज के जिम्मेदार नागरिकों का यह कर्तव्य है कि अपनी कमजोरियों से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखें l
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