महाभारत के युद्ध में सात महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु का वध कर डाला l अभिमन्यु श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा-अर्जुन का पुत्र था l उस दिन कौरवों के ललकारने पर भगवान कृष्ण व अर्जुन संशप्तकों से युद्ध करने गए हुए थे l उनके वापिस लौटने पर सुभद्रा ने कृष्ण से कहा --- तुम तो स्वयं भगवान हो , तुम्हारे रहते हुए भी तुम्हारे प्राणों से भी प्रिय भानजे की मृत्यु हो गई और तुम उसे न रोक सके l '
भगवान कृष्ण ने कहा ---- ' मैं भगवान अवश्य हूँ किन्तु मैं कर्मफल व्यवस्था में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता l जब छोटे - छोटे राज्य भी बिना विधि - व्यवस्था के नहीं चल सकते तब इतना विशाल ब्रह्माण्ड बिना नियम व अनुशासन के कैसे चल सकता है l
गोस्वामी तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका में कहा है --- ' जिन्ह बांधिस असुर नाग मुनि प्रबल कर्म की डोरी ' l कर्मफल व्यवस्था इतनी अकाट्य है कि स्वयं भगवान भी इसका सम्मान करते हैं l
मनुष्य अपने क्षुद्र अहं को संतुष्ट करने के लिए तथा तत्काल लाभ पाने की दृष्टि से दूसरों को पीड़ा पहुंचा कर सुख - शांति पाना चाहता है l क्या ऐसा संभव है ? बबूल बीज बोकर आम पाने की इच्छा व्यर्थ है l जब तक व्यक्ति को उसके पापों का परिणाम प्राप्त नहीं होता तब तक वह बहुत खुश रहता है l अपने जैसा सफल व्यक्ति किसी को भी नहीं समझता l किन्तु कहते हैं ---' भगवान के घर देर है , अंधेर नहीं l '
जब व्यक्ति को उसके दुष्कर्मों का दंड मिलता है तब वह बहुत खीजता है , दूसरों पर दोषारोपण कर स्वयं को निर्दोष बताने का प्रयास करता है l महाभारत के युद्ध में जब सभी कौरवों का अंत हो गया और भीम की गदा से घायल दुर्योधन जमीन पर पड़ा था , वह धर्म की दुहाई दे रहा था और पांडवों व कृष्ण पर आक्षेप लगा रहा था , तब उसके आक्षेपों का उत्तर देते हुए भगवान कृष्ण ने कहा --- दुर्योधन ! तुम्हारी ही प्रेरणा से बहुत से योद्धाओं ने मिलकर युद्ध स्थल में अकेले बालक अभिमन्यु का वध किया था , इन्ही सब कारणों से आज तुम भी रणभूमि में पड़े हो l '
भगवान कृष्ण ने कहा ---- ' मैं भगवान अवश्य हूँ किन्तु मैं कर्मफल व्यवस्था में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता l जब छोटे - छोटे राज्य भी बिना विधि - व्यवस्था के नहीं चल सकते तब इतना विशाल ब्रह्माण्ड बिना नियम व अनुशासन के कैसे चल सकता है l
गोस्वामी तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका में कहा है --- ' जिन्ह बांधिस असुर नाग मुनि प्रबल कर्म की डोरी ' l कर्मफल व्यवस्था इतनी अकाट्य है कि स्वयं भगवान भी इसका सम्मान करते हैं l
मनुष्य अपने क्षुद्र अहं को संतुष्ट करने के लिए तथा तत्काल लाभ पाने की दृष्टि से दूसरों को पीड़ा पहुंचा कर सुख - शांति पाना चाहता है l क्या ऐसा संभव है ? बबूल बीज बोकर आम पाने की इच्छा व्यर्थ है l जब तक व्यक्ति को उसके पापों का परिणाम प्राप्त नहीं होता तब तक वह बहुत खुश रहता है l अपने जैसा सफल व्यक्ति किसी को भी नहीं समझता l किन्तु कहते हैं ---' भगवान के घर देर है , अंधेर नहीं l '
जब व्यक्ति को उसके दुष्कर्मों का दंड मिलता है तब वह बहुत खीजता है , दूसरों पर दोषारोपण कर स्वयं को निर्दोष बताने का प्रयास करता है l महाभारत के युद्ध में जब सभी कौरवों का अंत हो गया और भीम की गदा से घायल दुर्योधन जमीन पर पड़ा था , वह धर्म की दुहाई दे रहा था और पांडवों व कृष्ण पर आक्षेप लगा रहा था , तब उसके आक्षेपों का उत्तर देते हुए भगवान कृष्ण ने कहा --- दुर्योधन ! तुम्हारी ही प्रेरणा से बहुत से योद्धाओं ने मिलकर युद्ध स्थल में अकेले बालक अभिमन्यु का वध किया था , इन्ही सब कारणों से आज तुम भी रणभूमि में पड़े हो l '
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