पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' अहंकार में दोष ही दोष हैं l ' अहंकारी व्यक्ति के विवेक का नाश होता है l उस पर दुर्बुद्धि हावी हो जाती है ---- जब समूचा हिंदुस्तान रियासतों में बंटा था , इन्ही में से एक रियासत थी --- विक्रमपुर , यह रियासत छोटी थी किन्तु यहाँ का राजा चित्रसेन स्वयं को बहुत बड़ा सम्राट समझता था , उसका अहंकार बहुत बढ़ा - चढ़ा था l अच्छी से अच्छी चीज में कमी निकाल देता था l उसके पास पुरस्कार की आशा लगाकर आने वाले दंड पाकर लौटते थे l
एक बार किसी अन्य रियासत से एक मूर्तिकार विक्रमपुर आया , वह राजा चित्रसेन से मिलने को उत्सुक था l लोगों ने उसे बहुत समझाया कि वह राजा से न मिले , किन्तु वह नहीं माना l उसने राजदरबार जाकर राजा को अपनी विद्दा से परिचित कराया , उसके हाथ में सारस की एक मूर्ति थी l राजा ने कहा --- ' सारस इतना छोटा होता है ? तुम्हे क्या दंड दूँ ? ' मूर्तिकार ने कहा ---- ' ऐसा सारस यहाँ से कुछ हजार मील की दूरी पर पाया जाता है , आप आज्ञा दें तो आपकी नजरबंदी में जाकर मैं उसे यहाँ ला सकता हूँ l क्या मजाल जो जरा सा भी अंतर पड़ जाये l मैं सिर्फ हाव - भाव पर ही नहीं वजन पर भी ध्यान देता हूँ l '
राजा चिढ़ गया , बोला --- ' उसकी जरुरत नहीं , तुम मेरी मूर्ति बनाओ l जरा सी भी कमी निकलने पर तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा l "
चार दिन बाद मूर्तिकार दरबार में उपस्थित हुआ , मूर्ति को उसने कपडे से ढँक रखा था l राजा के कहने पर उसने मूर्ति पर से कपड़ा हटाया , वह सिर से कमर तक ही थी l राजा चीखा --- 'ये पूरी मूर्ति है ? ' कलाकार ने कहा --- ' महाराज , आपने मूर्ति बनाने को कहा था , पूरी या आधी का आदेश नहीं दिया था l ' राजा के चेहरे पर क्रोध तैर रहा था l मूर्तिकार ने आगे कहा --- " यह हू - ब - हू आपकी मूर्ति है l इसका वजन चालीस सेर है l पैरों को छोड़कर आपका वजन भी इतना ही है l आपका वजन भी इतना ही है , यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ l '
क्रोध से बुद्धि का नाश हो जाता है l राजा ने कहा --- ' यदि तुम्हारा दावा गलत निकला तो तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा l ' राजा ने इसी आवेग से मंत्री को आदेश दिया --- ' परीक्षण किया जाये ---- l ' थोड़ा विलम्ब होते देख वह और क्रोधित हुआ , तब मंत्री ने समझाया कि परीक्षण के लिए आपका शरीर काटना पड़ेगा सिर से कमर तक l ' अब राजा कुछ बोल न सका , उसकी आँखें झुक गईं l उसने मूर्तिकार से क्षमा मांगी और कहा ---तुम जो चाहो पुरस्कार मांग लो ll
मूर्तिकार ने कहा --- ' देना ही है तो आप अहंकार की वृत्ति का त्याग कर दें , अहं त्यागने से देवी सरस्वती सम्मानित होंगी l भगवती सरस्वती के सम्मान से उनके वरद पुत्रों की ख्याति बढ़ती रहेगी l ' राजा ने भी अपने अहं के त्याग का संकल्प लिया l
एक बार किसी अन्य रियासत से एक मूर्तिकार विक्रमपुर आया , वह राजा चित्रसेन से मिलने को उत्सुक था l लोगों ने उसे बहुत समझाया कि वह राजा से न मिले , किन्तु वह नहीं माना l उसने राजदरबार जाकर राजा को अपनी विद्दा से परिचित कराया , उसके हाथ में सारस की एक मूर्ति थी l राजा ने कहा --- ' सारस इतना छोटा होता है ? तुम्हे क्या दंड दूँ ? ' मूर्तिकार ने कहा ---- ' ऐसा सारस यहाँ से कुछ हजार मील की दूरी पर पाया जाता है , आप आज्ञा दें तो आपकी नजरबंदी में जाकर मैं उसे यहाँ ला सकता हूँ l क्या मजाल जो जरा सा भी अंतर पड़ जाये l मैं सिर्फ हाव - भाव पर ही नहीं वजन पर भी ध्यान देता हूँ l '
राजा चिढ़ गया , बोला --- ' उसकी जरुरत नहीं , तुम मेरी मूर्ति बनाओ l जरा सी भी कमी निकलने पर तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा l "
चार दिन बाद मूर्तिकार दरबार में उपस्थित हुआ , मूर्ति को उसने कपडे से ढँक रखा था l राजा के कहने पर उसने मूर्ति पर से कपड़ा हटाया , वह सिर से कमर तक ही थी l राजा चीखा --- 'ये पूरी मूर्ति है ? ' कलाकार ने कहा --- ' महाराज , आपने मूर्ति बनाने को कहा था , पूरी या आधी का आदेश नहीं दिया था l ' राजा के चेहरे पर क्रोध तैर रहा था l मूर्तिकार ने आगे कहा --- " यह हू - ब - हू आपकी मूर्ति है l इसका वजन चालीस सेर है l पैरों को छोड़कर आपका वजन भी इतना ही है l आपका वजन भी इतना ही है , यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ l '
क्रोध से बुद्धि का नाश हो जाता है l राजा ने कहा --- ' यदि तुम्हारा दावा गलत निकला तो तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा l ' राजा ने इसी आवेग से मंत्री को आदेश दिया --- ' परीक्षण किया जाये ---- l ' थोड़ा विलम्ब होते देख वह और क्रोधित हुआ , तब मंत्री ने समझाया कि परीक्षण के लिए आपका शरीर काटना पड़ेगा सिर से कमर तक l ' अब राजा कुछ बोल न सका , उसकी आँखें झुक गईं l उसने मूर्तिकार से क्षमा मांगी और कहा ---तुम जो चाहो पुरस्कार मांग लो ll
मूर्तिकार ने कहा --- ' देना ही है तो आप अहंकार की वृत्ति का त्याग कर दें , अहं त्यागने से देवी सरस्वती सम्मानित होंगी l भगवती सरस्वती के सम्मान से उनके वरद पुत्रों की ख्याति बढ़ती रहेगी l ' राजा ने भी अपने अहं के त्याग का संकल्प लिया l
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