महान पुरुष वास्तव में किसी खास जाति , धर्म या देश से बंधे नहीं होते , वे ' वसुधैवकुटुंबकम ' के सिद्धांत का अपनी अंतरात्मा से अनुभव करते हैं l गैरीवाल्डी की गणना संसार के महापुरुषों में की जाती है , उनका जन्म 1807 में इटली में हुआ था l देशभक्ति , स्वाधीनता प्रेम और उदारता उनके जन्मजात गुण थे l वे कहते थे कि ये गुण उन्हें अपनी माता से मिले जो असाधारण दयालु प्रकृति की एवं कर्तव्य परायण स्त्री थीं l गैरीवाल्डी के प्रेरणास्रोत ये शब्द थे -----
' हर एक मनुष्य का पहला और पवित्र कर्तव्य यह है कि वह अपने देश की रक्षा के लिए तलवार उठाये l दूसरी बात यह है कि किसी देश को परतंत्र बनाने वाले आक्रमण में मदद न करे l और तीसरी बात यह है कि जो देश किसी बलवान शत्रु के आक्रमण और शासन से पीड़ित हो रहा है उसको अपना ही देश मानकर उसकी राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए तलवार उठाये l ऐसे व्यक्ति का दर्जा सबसे ऊँचा होता है l '
गैरीवाल्डी की उदारता का सबसे बड़ा प्रमाण उस समय मिला जब जर्मनी ने फ़्रांस पर हमला किया l यद्द्पि फ्रांस गैरीबाल्डी को अपना ' जानी दुश्मन ' समझता था और उसने गैरीवाल्डी को हर तरह से तंग भी किया था , लेकिन इस संकट के समय फ्रांस ने गैरीवाल्डी से सहायता की अपील की l
गैरीबाल्डी सब बातों को भूलकर फ़्रांस की मदद को चल दिया l लोग उसकी उदारता देखकर दंग रह गए l लोगों ने उसे पुरानी बात याद दिलाई तो गैरीवाल्डी ने कहा ---- " राष्ट्रीय आजादी एक एक पवित्र वस्तु है और उसकी रक्षा के लिए तत्पर होना हर आदमी का कर्तव्य है l इटली अपनी स्वाधीनता प्राप्त कर चुका , अब जर्मनी , फ्रांस को हड़पना चाहता है , तो इटली का कर्तव्य है कि फ़्रांस की स्वाधीनता की रक्षा में सहायक बने l " इस युद्ध में गैरीवाल्डी ने बहुत वीरता दिखाई , उसे करोड़ों फ्रांसीसी जनता का सम्मान मिला l अंत में फ़्रांस और जर्मनी में सुलह हो गई l
इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि गैरीवाल्डी का जन्म जिस ' लैसी ' नगर में हुआ था , वह पहले इटली नगर का ही था l पर एक युद्ध में सहायता पाने के एवज में इटली की सरकार ने उसे फ्रांस को दे दिया था l अब गैरीबाल्डी ने फ्रांस की रक्षा के लिए एक बड़ा काम कर दिखाया तो एक मित्र ने कहा कि --- वह फ़्रांस सरकार से ' लैसी ' का नगर इटली को लौटा देने की प्रार्थना करे l तब गैरीवाल्डी ने कहा --- ' मैं अपनी जिह्वा से अपनी सेवा का बदला मांगू यह संभव नहीं है l "गैरीवाल्डी का समस्त जीवन अन्याय पीड़ितों की मदद करने में व्यतीत हुआ l
उसकी मृत्यु पर इटली व यूरोप में शोक छ गया कि यूरोप का साबसे बड़ा वीरात्मा चल बसा l
' हर एक मनुष्य का पहला और पवित्र कर्तव्य यह है कि वह अपने देश की रक्षा के लिए तलवार उठाये l दूसरी बात यह है कि किसी देश को परतंत्र बनाने वाले आक्रमण में मदद न करे l और तीसरी बात यह है कि जो देश किसी बलवान शत्रु के आक्रमण और शासन से पीड़ित हो रहा है उसको अपना ही देश मानकर उसकी राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए तलवार उठाये l ऐसे व्यक्ति का दर्जा सबसे ऊँचा होता है l '
गैरीवाल्डी की उदारता का सबसे बड़ा प्रमाण उस समय मिला जब जर्मनी ने फ़्रांस पर हमला किया l यद्द्पि फ्रांस गैरीबाल्डी को अपना ' जानी दुश्मन ' समझता था और उसने गैरीवाल्डी को हर तरह से तंग भी किया था , लेकिन इस संकट के समय फ्रांस ने गैरीवाल्डी से सहायता की अपील की l
गैरीबाल्डी सब बातों को भूलकर फ़्रांस की मदद को चल दिया l लोग उसकी उदारता देखकर दंग रह गए l लोगों ने उसे पुरानी बात याद दिलाई तो गैरीवाल्डी ने कहा ---- " राष्ट्रीय आजादी एक एक पवित्र वस्तु है और उसकी रक्षा के लिए तत्पर होना हर आदमी का कर्तव्य है l इटली अपनी स्वाधीनता प्राप्त कर चुका , अब जर्मनी , फ्रांस को हड़पना चाहता है , तो इटली का कर्तव्य है कि फ़्रांस की स्वाधीनता की रक्षा में सहायक बने l " इस युद्ध में गैरीवाल्डी ने बहुत वीरता दिखाई , उसे करोड़ों फ्रांसीसी जनता का सम्मान मिला l अंत में फ़्रांस और जर्मनी में सुलह हो गई l
इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि गैरीवाल्डी का जन्म जिस ' लैसी ' नगर में हुआ था , वह पहले इटली नगर का ही था l पर एक युद्ध में सहायता पाने के एवज में इटली की सरकार ने उसे फ्रांस को दे दिया था l अब गैरीबाल्डी ने फ्रांस की रक्षा के लिए एक बड़ा काम कर दिखाया तो एक मित्र ने कहा कि --- वह फ़्रांस सरकार से ' लैसी ' का नगर इटली को लौटा देने की प्रार्थना करे l तब गैरीवाल्डी ने कहा --- ' मैं अपनी जिह्वा से अपनी सेवा का बदला मांगू यह संभव नहीं है l "गैरीवाल्डी का समस्त जीवन अन्याय पीड़ितों की मदद करने में व्यतीत हुआ l
उसकी मृत्यु पर इटली व यूरोप में शोक छ गया कि यूरोप का साबसे बड़ा वीरात्मा चल बसा l
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