पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' बुराइयों के प्रति व्यूह रचना संगठित प्रतिकार आज की सामयिक आवश्यकता है l धार्मिक क्रियाओं के नाम पर मूढ़ मान्यताएं और परम्पराओं के नाम पर कुरीतियां तभी तक हैं , जब तक हम उन्हें गले का हार समझकर लिपटाएँ हैं l जिस क्षण से असलियत पहचानी , उन्हें विषदंश करने वाला सांप समझकर उतार फेंकने के लिए सामूहिक प्रयास शुरू करने चाहिए l ऐसा प्रयास करते ही समूचा समाज स्वस्थ होता दिखाई पड़ेगा l पर इस युगांतकारी कार्य के लिए शक्ति का स्रोत संगठन , साहस , सावधानी और मनोबल में है l ये महती शक्तियां हैं जिसके आधार पर नवयुग का सृजन बन पड़ेगा l '
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' बुराइयाँ भी अच्छाइयों के आधार पर खड़ी होती हैं और इन्ही से अपना पोषण प्राप्त करती हैं l बुरे व्यक्ति -- डाकू , अनैतिक कार्य करने वालों में भी कुछ विशेषताएं हैं जो उनकी शक्ति का स्रोत हैं --- संगठन , साहस , सावधानी और मनोबल --- इन चार विशेषताओं के कारण ही दुष्टता तेजी से पनपती है l '
अच्छाई और बुराई में यही अंतर है कि बुराई मजबूती से संगठित है , सावधान है और उनमे साहस है लेकिन अच्छाई संगठित नहीं है इसलिए उनका मुकाबला नहीं कर पाती l यदि अच्छाई भी इन विशेषताओं को अपने भीतर विकसित कर ले तो बुराई के साम्राज्य को ध्वस्त कर दे l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' बुराइयाँ भी अच्छाइयों के आधार पर खड़ी होती हैं और इन्ही से अपना पोषण प्राप्त करती हैं l बुरे व्यक्ति -- डाकू , अनैतिक कार्य करने वालों में भी कुछ विशेषताएं हैं जो उनकी शक्ति का स्रोत हैं --- संगठन , साहस , सावधानी और मनोबल --- इन चार विशेषताओं के कारण ही दुष्टता तेजी से पनपती है l '
अच्छाई और बुराई में यही अंतर है कि बुराई मजबूती से संगठित है , सावधान है और उनमे साहस है लेकिन अच्छाई संगठित नहीं है इसलिए उनका मुकाबला नहीं कर पाती l यदि अच्छाई भी इन विशेषताओं को अपने भीतर विकसित कर ले तो बुराई के साम्राज्य को ध्वस्त कर दे l
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