पुराण की एक कथा है ---- भगवान श्रीराम के पूर्वजों में से एक थे -- राजा चक्कवेण l वे बड़े प्रतापी राजा थे और उनकी प्रजा भी बड़ी सुखी - समृद्ध थी , परन्तु वे स्वयं एक झोंपड़ी में रहते थे l राज - काज से जो समय मिलता उसमे वे अपने जीविकोपार्जन के लिए खेती कर लेते l उनकी धर्मपत्नी भी बड़ी सादगी से रहतीं l जब कभी किसी काम से बाहर जातीं , तो नगर की धनाढ्य स्त्रियां उन्हें टोकतीं कि आप हमारी महारानी हैं, परन्तु आपके शरीर पर कोई आभूषण नहीं है l महाराज अपनी मर्यादा में ऐसा नहीं करते हैं तो आप हमें आदेश दें , तो हम आपके लिए आभूषण बनवा दें l नगर की स्त्रियों के बार - बार कहने से प्रभावित होकर महारानी ने आभूषणों की बात महाराज चक्कवेण से कह दी l
महाराज यह सुनकर चिंता में पड़ गए , उन्होंने कहा महारानी आभूषणों के लायक तो हमारी स्थिति नहीं है , फिर भी तुमने जीवन में पहली बार मुझसे कुछ माँगा है , तो कुछ तो करना ही होगा l उसके बाद महाराज ने अपने प्रधानमंत्री को बुलाया और कहा --- " हम अपने सुख के लिए राज्य की जनता से अधिक कर वसूल नहीं सकते l तुम ऐसा करो कि लंका के राजा रावण से कर वसूल करो l उसने स्वर्ण की बहुत जमाखोरी की है , इसलिए उसी से तुम स्वर्ण ले आओ l " मंत्री राजा की बात मानकर लंका गया l वहां जाकर उसने रावण से कहा --- " हमारे महाराज चक्कवेण ने तुमसे कर लेने के लिए भेजा है l दम्भी रावण यह सुनकर बहुत हँसा और बोलै तुम्हारे भिखारी राजा की यह मजाल कि रावण से कर वसूल करने की सोचे l "
रावण की यह बात सुनकर प्रधानमंत्री ने कहा --- " रावण तुम अभी हमारे महाराज के प्रभाव से अपरिचित हो इसलिए तुम्हे कुछ नमूना दिखा ही देते हैं l ऐसा कहते हुए उसने कहा --- " यदि हमारे महाराज चक्कवेण सच्चे लोकसेवी और तपस्वी हैं तो लंका का उत्तरी और दक्षिणी हिस्सा ध्वस्त हो जाये l " प्रधानमंत्री के ऐसा कहते ही सोने की लंका ढहने लगी l न कोई सेना और न कोई मन्त्र शक्ति , सिर्फ सच्ची लोकसेवा के साथ तप और त्याग का ऐसा प्रभाव l रावण इसे देखकर चमत्कृत भी हुआ और प्रभावित भी l उसने बहुत सारा स्वर्ण प्रधानमंत्री को देकर विदा कर दिया l प्रधानमंत्री ने वापस घर पहुंचकर यह घटना अपने महाराज व महारानी को सुना दी l
प्रधानमंत्री द्वारा यह घटना सुनने के बाद महाराज चक्कवेण ने महारानी से कहा --- ' महारानी ! सच आपके सामने है l अब आप चाहें तो आभूषण पहन लें , लेकिन आपके आभूषण पहनते ही मेरी सच्ची लोकसेवा और तपस्या का यह प्रभाव नष्ट हो जायेगा l " यह विचित्र , किन्तु सत्य सुनकर महारानी को यथार्थ समझ में आ गया , उन्होंने आभूषण पहनने से स्पष्ट इनकार कर दिया l इस पर महाराज ने कहा ---- " महारानी , तप - त्याग , सादगी , सदाचार ही लोकसेवी की सच्ची सम्पति है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था --- " लोकसेवा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लोकसेवी आम जनता की जिंदगी से कितना जुड़े हैं l गरीब जनता से दूर ऐशोआराम में रहने पर उनकी आँखों पर पट्टी चढ़ जाती है और वे जनता की दुःख , तकलीफों को देखना बंद कर देते हैं l फिर धीरे - धीरे लोकसेवा व्यवसाय बन जाती है और लोकतंत्र भ्रष्टतंत्र बन जाता है l "
महाराज यह सुनकर चिंता में पड़ गए , उन्होंने कहा महारानी आभूषणों के लायक तो हमारी स्थिति नहीं है , फिर भी तुमने जीवन में पहली बार मुझसे कुछ माँगा है , तो कुछ तो करना ही होगा l उसके बाद महाराज ने अपने प्रधानमंत्री को बुलाया और कहा --- " हम अपने सुख के लिए राज्य की जनता से अधिक कर वसूल नहीं सकते l तुम ऐसा करो कि लंका के राजा रावण से कर वसूल करो l उसने स्वर्ण की बहुत जमाखोरी की है , इसलिए उसी से तुम स्वर्ण ले आओ l " मंत्री राजा की बात मानकर लंका गया l वहां जाकर उसने रावण से कहा --- " हमारे महाराज चक्कवेण ने तुमसे कर लेने के लिए भेजा है l दम्भी रावण यह सुनकर बहुत हँसा और बोलै तुम्हारे भिखारी राजा की यह मजाल कि रावण से कर वसूल करने की सोचे l "
रावण की यह बात सुनकर प्रधानमंत्री ने कहा --- " रावण तुम अभी हमारे महाराज के प्रभाव से अपरिचित हो इसलिए तुम्हे कुछ नमूना दिखा ही देते हैं l ऐसा कहते हुए उसने कहा --- " यदि हमारे महाराज चक्कवेण सच्चे लोकसेवी और तपस्वी हैं तो लंका का उत्तरी और दक्षिणी हिस्सा ध्वस्त हो जाये l " प्रधानमंत्री के ऐसा कहते ही सोने की लंका ढहने लगी l न कोई सेना और न कोई मन्त्र शक्ति , सिर्फ सच्ची लोकसेवा के साथ तप और त्याग का ऐसा प्रभाव l रावण इसे देखकर चमत्कृत भी हुआ और प्रभावित भी l उसने बहुत सारा स्वर्ण प्रधानमंत्री को देकर विदा कर दिया l प्रधानमंत्री ने वापस घर पहुंचकर यह घटना अपने महाराज व महारानी को सुना दी l
प्रधानमंत्री द्वारा यह घटना सुनने के बाद महाराज चक्कवेण ने महारानी से कहा --- ' महारानी ! सच आपके सामने है l अब आप चाहें तो आभूषण पहन लें , लेकिन आपके आभूषण पहनते ही मेरी सच्ची लोकसेवा और तपस्या का यह प्रभाव नष्ट हो जायेगा l " यह विचित्र , किन्तु सत्य सुनकर महारानी को यथार्थ समझ में आ गया , उन्होंने आभूषण पहनने से स्पष्ट इनकार कर दिया l इस पर महाराज ने कहा ---- " महारानी , तप - त्याग , सादगी , सदाचार ही लोकसेवी की सच्ची सम्पति है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था --- " लोकसेवा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लोकसेवी आम जनता की जिंदगी से कितना जुड़े हैं l गरीब जनता से दूर ऐशोआराम में रहने पर उनकी आँखों पर पट्टी चढ़ जाती है और वे जनता की दुःख , तकलीफों को देखना बंद कर देते हैं l फिर धीरे - धीरे लोकसेवा व्यवसाय बन जाती है और लोकतंत्र भ्रष्टतंत्र बन जाता है l "
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