स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु भाइयों को संबोधित करते हुए राखाल महाराज से कहा था ---- " राखाल ! आज रात्रि हमें दिव्य दर्शन हुआ है l इस दिव्य दर्शन में हमने अपने देश भारत के अभ्युदय को देखा है l भारत के समुज्ज्वल भविष्य का साक्षात्कार किया है ------- ' स्वामीजी जब ये सब बात कर रहे थे , तब उनकी मुख मुद्रा वर्तमान को पार कर भविष्य को स्पष्ट देख रही थी l वह बोल रहे थे ---- " एक नवीन भारत निकल पड़ेगा --- हल पकड़कर , किसानों की कुटी भेदकर , मछुए , माली , मोची , मेहतरों की कुटीरों से l निकल पड़ेगा --- बनिये की दुकानों से , भुजवा के भाड़ के पास से , कारखाने से , हाट से , बाजार से l अपना नवीन भारत निकल पड़ेगा --- झाड़ियों , जंगलों , पहाड़ों , पर्वतों से l इन लोगों ने हजारों वर्षों तक नीरव अत्याचार सहन किया है , उससे पाई है अपूर्व सहनशीलता l सनातन दुःख उठाया है , जिससे पाई है , अटल जीवनी शक्ति l यही लोग अपने नवीन भारत के निर्माता होंगे l "
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