26 February 2020

WISDOM ----- ईर्ष्या की आग

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- '   ईर्ष्या  की  आग   औरों  का  अहित  तो  करती  है  , समाज  का  भी  अमंगल  ही  होता  है    किन्तु  इससे  ईर्ष्यालु  को   तो  कोई  लाभ  होता  नहीं   l   स्वयं  ईर्ष्यालु  को  यह  आग  हर  क्षण   उसी  प्रकार  जलाती   रहती  है   जैसे  अंगीठी  की  आग  संपर्क  में  आने  वाली  वस्तु  को  कभी - कभी  ही  जला  पाती  है    किन्तु स्वयं  अंगीठी  के  कलेजे  में   हर  क्षण  तपन  भरी  रहती  है  l  इसी  ताप  से  लोहे  की  अँगीठियाँ   भी  थोड़े  ही  समय  में  जल - जलकर   बेकार  होकर  झड़   जाती  हैं   l   ईर्ष्यालु  भी    ईर्ष्या  की  दाहकता  से  निरंतर  तप्त  रहता  है  ,  उसका  मन  व  शरीर   डाह  से  झुलसकर   नि: शक्त   हो  जाता  है  l '
   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' ईर्ष्या  का  जन्म  एक  तरह  की  निराशा  से  होता  है   l   यह  निराशा  दूसरे  की  सफलता   को  देखकर   अपने  पीछे  रह  जाने  की   भावना  से    होती  है   l    दूसरे  की  सम्पन्नता  - श्रेष्ठता    के  प्रति  बढ़ी  हुई  ईर्ष्या   स्वयं  की  समृद्धि  और  उत्कृष्टता  का  विचार   नहीं  करती   बल्कि  ईर्ष्यालु  व्यक्ति  दूसरे  के  मार्ग  में  रोड़े   अटकाने   और  उन्हें  किसी  प्रकार  हानि  पहुँचाने  का  प्रयास  करने  में  ही  अपनी  शक्ति   का  अपव्यय  करता  है  l ' 
  समाज  में  फैले  संघर्षों  का  मूल  मुख्यत:  ईर्ष्या  होती  है  l   आज  की  परिस्थितियों  पर  दृष्टिपात  करें  तो  चारों  ओर   ईर्ष्या  का  ही  साम्राज्य  फैला  दिखेगा  l   ईर्ष्या  मन  की  कुटिलता  का    परिणाम  है  l   अन्य  सभी  नष्ट  हो  जाएँ  हम  अकेले  ही  जीवित  रहें   यह  सोचना  ओछापन   है  l
  ' परस्पर  सहयोग  तथा  ' जियो  और  जीने  दो  '    की  नीति   अपनाने  में  ही  सबकी  भलाई  है  l 

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