पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' मनुष्य मूलत: संवेदनशील प्राणी है l उसमे भाव - संवेदना लबालब भरी हुई है l यह संवेदना किसी कारणवश जब गलत दिशा में मुड़ जाती है तो मनुष्य को चोर , डकैत , लुटेरा , हत्यारा , आतंकवादी बना देती है l हीन परिस्थिति और संगति में पढ़कर आदमी अपने भीतर के ईश्वरत्व के ऊपर पर्दा डाल देता है l '
आचार्य श्री लिखते है ---- ' इन दिनों परिस्थिति एकदम विपरीत है l सामाजिक विषमता इस कदर बढ़ी है की आज मनुष्य अपने देवत्व को धारण करना चाहकर भी नहीं कर पाता और विवशता में पढ़कर असुरता और आक्रामकता की ओर फिसल पड़ता है l कोई आदमी कुबेर जैसी सम्पति एकत्रित कर के अपने कोठार भरे है , तो कहीं विपन्नता की इतनी गहरी खाई है कि उसमे डूब मरने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं l कहीं अन्न के पहाड़ खड़े हुए हैं तो कहीं भूखों मरने की नौबत है l पेट की ज्वाला और उन्नत बनने का सपना उसे बुरे कार्यों की और घसीट ले जाता है तथा इनसान````` को शैतान बना डालता है l वह शक्ति का , क्रूरता का सहारा लेने लगता है l
मनुष्य में ईर्ष्या , द्वेष , आक्रमण आदि के जो तत्व दिखलाई पड़ते हैं , वे वस्तुत: दमन , शोषण , उत्पीड़न और अत्याचार का परिणाम है l
आचार्य श्री लिखते है ---- ' इन दिनों परिस्थिति एकदम विपरीत है l सामाजिक विषमता इस कदर बढ़ी है की आज मनुष्य अपने देवत्व को धारण करना चाहकर भी नहीं कर पाता और विवशता में पढ़कर असुरता और आक्रामकता की ओर फिसल पड़ता है l कोई आदमी कुबेर जैसी सम्पति एकत्रित कर के अपने कोठार भरे है , तो कहीं विपन्नता की इतनी गहरी खाई है कि उसमे डूब मरने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं l कहीं अन्न के पहाड़ खड़े हुए हैं तो कहीं भूखों मरने की नौबत है l पेट की ज्वाला और उन्नत बनने का सपना उसे बुरे कार्यों की और घसीट ले जाता है तथा इनसान````` को शैतान बना डालता है l वह शक्ति का , क्रूरता का सहारा लेने लगता है l
मनुष्य में ईर्ष्या , द्वेष , आक्रमण आदि के जो तत्व दिखलाई पड़ते हैं , वे वस्तुत: दमन , शोषण , उत्पीड़न और अत्याचार का परिणाम है l
No comments:
Post a Comment