पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- '' अपने बौद्धिक होने के अहंकार और बढ़ती निष्ठुरता के कारण मनुष्य ऐसा कुछ कर रहा है जिसे देखकर प्राचीन दैत्यों के दिल दहल जाएँ l जीवित बछड़ों का पेट फाड़कर तरल द्रव निकालने , हँसते - खेलते खूबसूरत खरगोशों को दबोचकर चीड़ - फाड़ कर देने जैसे नृशंस कृत्य सिर्फ इसलिए किये जाते हैं कि अधिक से अधिक फैशन का सामान बनें और सुन्दर दिख सकें l धन कमाने और वैभव जुटाने की सनक यहाँ तक है कि किसी के घर - आँगन की खुशहाली - नन्हे - मुन्ने बालकों को पकड़ कर उनके अंग निकालने और बेचने का धंधा भी शुरू हो गया है l इनकी चीख चिल्लाहट , तड़फड़ाहट के बीच वह इसलिए खुश होता है कि कमाई हो गई l यह सब और किसी का नहीं उस मनुष्य का व्यवहार है जिसे अपने बुद्धिमान और सभ्य होने पर गर्व है l "
डॉ. राधाकृष्णन ' द कांसेप्ट ऑफ मैन ' में लिखते हैं ---- ' विश्व के इतिहास से साफ जाहिर होता है कि जब कभी जहाँ कहीं भी समाज टूटा - बिखरा है उसका एक ही कारण है मानव की व्यक्तिगत और समूहगत निष्ठुरता l -----
राजतन्त्र को उलटकर प्रजातंत्र , साम्यवाद को उलटकर समाजवाद का स्थापन , यही है विश्व का इतिहास l पर क्या मनुष्य इस उलट - फेर में सुखी हो सका ? नहीं ! क्योंकि उसने अपने व्यवहार का प्रेरक तत्व नहीं बदला l निष्ठुरता के स्थान पर अन्त: संवेदना की स्थापना नहीं की l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' समस्त समस्याओं का एकमात्र हल है --- भाव - संवेदनाओं का जागरण l इस जागरण के बाद ही उसके व्यवहार में चिर स्थायी सुधार संभव हो सकेगा l हृदय में संवेदना के जागते ही स्वार्थ उलट कर परमार्थ , ध्वंस को सृजन और क्रूरता को दयालुता में बदलते देर नहीं लगेगी l '
डॉ. राधाकृष्णन ' द कांसेप्ट ऑफ मैन ' में लिखते हैं ---- ' विश्व के इतिहास से साफ जाहिर होता है कि जब कभी जहाँ कहीं भी समाज टूटा - बिखरा है उसका एक ही कारण है मानव की व्यक्तिगत और समूहगत निष्ठुरता l -----
राजतन्त्र को उलटकर प्रजातंत्र , साम्यवाद को उलटकर समाजवाद का स्थापन , यही है विश्व का इतिहास l पर क्या मनुष्य इस उलट - फेर में सुखी हो सका ? नहीं ! क्योंकि उसने अपने व्यवहार का प्रेरक तत्व नहीं बदला l निष्ठुरता के स्थान पर अन्त: संवेदना की स्थापना नहीं की l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' समस्त समस्याओं का एकमात्र हल है --- भाव - संवेदनाओं का जागरण l इस जागरण के बाद ही उसके व्यवहार में चिर स्थायी सुधार संभव हो सकेगा l हृदय में संवेदना के जागते ही स्वार्थ उलट कर परमार्थ , ध्वंस को सृजन और क्रूरता को दयालुता में बदलते देर नहीं लगेगी l '
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