असुरता कितनी नृशंस हो सकती है , आये दिन इसके उदाहरण हमें देखने को मिल सकते हैं l इतिहास का पन्ना तो इससे भरा पड़ा है l यह बर्बरता सामूहिक रूप से बड़े पैमाने पर और मात्र सनक की पूर्ति के लिए भी की जाती है l छूट - पुट लड़ाई - झगड़ों से लेकर विश्व युद्ध तक में जितनी भी क्रूरताएं हुईं और विनाश लीलाएं रची गईं उन सबके मूल में असुरता ही प्रधान रही l क्रूर कृत्य में संलग्न व्यक्तियों का चिंतन भी अन्याय एवं अनाचारपूर्ण होता है l चिंतन के अनुरूप आसुरी तत्व उन पर हावी हो जाते हैं l
जब क्रूरता का भूत किसी पर सवार होता है तो वह उसे कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा देता है , पर अंत में वह भी उस क्रूर प्रवाह का शिकार हुए बिना नहीं रह पाता l इतिहास में इसके अनेकों जग प्रसिद्ध उदाहरण है l
इसलिए हमारे ऋषियों का , आचार्यों का कहना है कि चिंतन - चेतना को परिष्कृत किये बिना समाज का कल्याण और संसार में शांति संभव नहीं है l ' बड़ा आदमी ' बनने से पहले इनसान बनना जरुरी है l
आज मनुष्य ' पत्थर - युग ' में पहुँच कर आदि - मानव बन गया l
जब क्रूरता का भूत किसी पर सवार होता है तो वह उसे कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा देता है , पर अंत में वह भी उस क्रूर प्रवाह का शिकार हुए बिना नहीं रह पाता l इतिहास में इसके अनेकों जग प्रसिद्ध उदाहरण है l
इसलिए हमारे ऋषियों का , आचार्यों का कहना है कि चिंतन - चेतना को परिष्कृत किये बिना समाज का कल्याण और संसार में शांति संभव नहीं है l ' बड़ा आदमी ' बनने से पहले इनसान बनना जरुरी है l
आज मनुष्य ' पत्थर - युग ' में पहुँच कर आदि - मानव बन गया l
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