पंचतंत्र की एक कहानी है कि ---- चार मित्र एक जंगल से होकर जा रहे थे l चारों बहुत विद्वान् थे और उन्हें अपनी विद्व्ता पर बड़ा घमंड था l रास्ते में उन्होंने देखा कि बहुत सारी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं l एक मित्र ने कहा मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ये एक शेर की हड्डियां हैं l
दूसरे मित्र ने कहा ---- मैं इन हड्डियों को जोड़कर उन्हें शेर का रूप दे सकता हूँ l उसने वैसा ही किया, सब हड्डियों को जोड़कर शेर का ढांचा बना दिया l
तीसरा मित्र और भी ज्ञानी था l उसने कहा --- मैं इस ढांचे में प्राण फूँक सकता हूँ , इसे जीवित कर सकता हूँ l
चौथे मित्र ने उसे बहुत समझाया कि वह ऐसा न करे , अपनी शक्ति से ज्यादा ताकतवर चीज का निर्माण नहीं करना चाहिए , वह न केवल स्वयं के लिए अपितु सम्पूर्ण समाज के लिए घातक होती है l चलते - फिरते लोगों को , हँसते - खेलते परिवारों को , निर्दोष बच्चों को लाश में तब्दील कर देना , चारों ओर हाहाकार मचवा देना बुद्धिमानी नहीं है l यदि तुम्हारे भीतर ऐसी योग्यता है तो संसार को वह सब दो जिससे चारों ओर बच्चों की हंसी - खिलखिलाहट गूंजे , लोगों के जीवन में उमंग हो , खुशियां हों l
चौथे मित्र ने उसकी चेतना को जगाने का प्रयास किया और कहा --- यह शेर जीवित होकर सबसे पहले तुम्हे ( उसमे प्राण फूंकने वाले ) को ही खायेगा l
लेकिन वह नहीं माना , कहते हैं ---' विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' और उसने अपने ज्ञान का दुरूपयोग करना शुरू किया l
चौथा मित्र विवेकशील था , वह दौड़कर पेड़ पर चढ़ गया l शेर जीवित हो गया , वह भूखा था उसने तीनो मित्रों को खा लिया l
दूसरे मित्र ने कहा ---- मैं इन हड्डियों को जोड़कर उन्हें शेर का रूप दे सकता हूँ l उसने वैसा ही किया, सब हड्डियों को जोड़कर शेर का ढांचा बना दिया l
तीसरा मित्र और भी ज्ञानी था l उसने कहा --- मैं इस ढांचे में प्राण फूँक सकता हूँ , इसे जीवित कर सकता हूँ l
चौथे मित्र ने उसे बहुत समझाया कि वह ऐसा न करे , अपनी शक्ति से ज्यादा ताकतवर चीज का निर्माण नहीं करना चाहिए , वह न केवल स्वयं के लिए अपितु सम्पूर्ण समाज के लिए घातक होती है l चलते - फिरते लोगों को , हँसते - खेलते परिवारों को , निर्दोष बच्चों को लाश में तब्दील कर देना , चारों ओर हाहाकार मचवा देना बुद्धिमानी नहीं है l यदि तुम्हारे भीतर ऐसी योग्यता है तो संसार को वह सब दो जिससे चारों ओर बच्चों की हंसी - खिलखिलाहट गूंजे , लोगों के जीवन में उमंग हो , खुशियां हों l
चौथे मित्र ने उसकी चेतना को जगाने का प्रयास किया और कहा --- यह शेर जीवित होकर सबसे पहले तुम्हे ( उसमे प्राण फूंकने वाले ) को ही खायेगा l
लेकिन वह नहीं माना , कहते हैं ---' विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' और उसने अपने ज्ञान का दुरूपयोग करना शुरू किया l
चौथा मित्र विवेकशील था , वह दौड़कर पेड़ पर चढ़ गया l शेर जीवित हो गया , वह भूखा था उसने तीनो मित्रों को खा लिया l
No comments:
Post a Comment