पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इस अहंकार से मनुष्य जाति का जितना अहित हुआ है , उतना अब तक किसी और कारण से नहीं हुआ है l न भूख से , न बीमारी से , न बाढ़ से , न सूखे से , न रोग से , न दुर्बलता से ---- इनमे से किसी भी कारण से इतने लोग बरबाद नहीं हुए , जितने कि अहं के टकराव के कारण विनष्ट हुए हैं l '
संसार में जितने भी द्वंद , संघर्ष अथवा युद्ध हुए हैं , या हो रहे हैं उनके मूल में हमेशा ' अहंकार ' ही रहा है l दो व्यक्तियों या दो परिवारों के बीच की लड़ाई हो अथवा दो राष्ट्रों के बीच छिड़ने वाला महायुद्ध हो उनके पीछे वास्तविकता है --- अहंकार , आधिपत्य ज़माने की आकांक्षा और प्रतिद्वंदी से अपने आपको ज्यादा शक्तिशाली दिखलाने की चाहत l
अहंकर के कारण ही मनुष्य का घोर नैतिक पतन भी हुआ है l स्वार्थ , संकीर्णता , अनुदारता , दूसरे का हक छीनना , अनीति , अनाचार -- इन सब दुर्गुणों का एकमात्र कारण अहंकार ही है l
आचार्य श्री कहते हैं ---- ' अहंकार की तुष्टि किसी चीज को पाने से नहीं , बल्कि उस चीज को दूसरे की तुलना में ज्यादा पाने से होती है l अहंकारी स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता है l
इसी कारण लोग लोभ करते हैं ताकि दूसरे से संपन्न दिख सकें l इसी कारण दूसरों को मुर्ख बनाना चाहते हैं , ताकि स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध कर सकें l
आचार्य श्री कहते हैं --- ' इस सत्य पर बार - बार विचार किया जाना चाहिए कि समस्त सृष्टि में सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोपरि ईश्वर है l
हम कितने भी शक्तिशाली हो जाएँ प्रकृति पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते l
संसार में जितने भी द्वंद , संघर्ष अथवा युद्ध हुए हैं , या हो रहे हैं उनके मूल में हमेशा ' अहंकार ' ही रहा है l दो व्यक्तियों या दो परिवारों के बीच की लड़ाई हो अथवा दो राष्ट्रों के बीच छिड़ने वाला महायुद्ध हो उनके पीछे वास्तविकता है --- अहंकार , आधिपत्य ज़माने की आकांक्षा और प्रतिद्वंदी से अपने आपको ज्यादा शक्तिशाली दिखलाने की चाहत l
अहंकर के कारण ही मनुष्य का घोर नैतिक पतन भी हुआ है l स्वार्थ , संकीर्णता , अनुदारता , दूसरे का हक छीनना , अनीति , अनाचार -- इन सब दुर्गुणों का एकमात्र कारण अहंकार ही है l
आचार्य श्री कहते हैं ---- ' अहंकार की तुष्टि किसी चीज को पाने से नहीं , बल्कि उस चीज को दूसरे की तुलना में ज्यादा पाने से होती है l अहंकारी स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता है l
इसी कारण लोग लोभ करते हैं ताकि दूसरे से संपन्न दिख सकें l इसी कारण दूसरों को मुर्ख बनाना चाहते हैं , ताकि स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध कर सकें l
आचार्य श्री कहते हैं --- ' इस सत्य पर बार - बार विचार किया जाना चाहिए कि समस्त सृष्टि में सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोपरि ईश्वर है l
हम कितने भी शक्तिशाली हो जाएँ प्रकृति पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते l
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