पं. श्रीराम शर्मा आचार्यजी का कहना है ---- ' जिंदगी की सार्थकता को यदि खोजना है तो वह दूसरों की भलाई करने में है l संसार में उसी परिश्रम को सार्थक कहा गया है , जो दूसरों के लिए किया जाता है l वही मेहनत सफल कहलाती है जिससे दूसरों का भला होता है l
रूस के महान साहित्यकार टॉलस्टॉय का कथन है ----' जो दूसरों के लिए कुछ नहीं करता , वह कभी सुखी नहीं रह पाता l अपना पेट तो छोटी सी चींटी भी भर लेती है l दूसरों का पेट भरो और उन पेटों को भरो , जो खाली हैं , जिनमे क्षुधा ( भूख ) की आग दहक रही है l जो अपने लिए नहीं , दूजे के लिए कुछ करता है , वही सच्चा इनसान है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' दूसरों के लिए किये गए इस तरह के परिश्रम में यदि निष्कामता का भाव हो , जनहित का भाव हो , तो ऐसा कर्म आध्यात्मिक कर्म बन जाता है , जिसका फल अनंत गुना मधुर एवं व्यापक होता है l '
मनुष्य जीवन की किसी भी अवस्था में और किसी भी स्थिति में परोपकार किया जा सकता है l बस इसके लिए संवेदनशील और उदार भावनाएं चाहिए l -------- प्राचीन समय में एक बूढ़ा बेसहारा आदमी भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह करता था l वह सवेरे से रात तक भटकता और अधिक से अधिक भिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करता l
वृद्ध की दिनचर्या का एक हिस्सा यह भी था कि वह सवेरे सोकर उठता , सबसे पहले शुद्ध होकर मंदिर जाता , वहां पूजा कर के भीख मांगने निकल जाता l अपनी कुटिया से मुख्य मार्ग की ओर जाते समय वह अनाज के दानों से मुट्ठियां भर लेता और जहाँ पक्षियों को देखता , वहां दाने बिखेर देता l दोपहर को जब खाना खाने बैठता तो आधे से अधिक खाना लोगों में बाँट देता l उसे अपना पेट भरने की इतनी अधिक चिंता नहीं होती , जितनी दूसरे भूखे लोगों की होती l जिस दिन वह अधिक परमार्थ करता , उस रात उसे बड़ी गहरी नींद आती और वह निश्चिंतता पूर्वक सो जाता l
रूस के महान साहित्यकार टॉलस्टॉय का कथन है ----' जो दूसरों के लिए कुछ नहीं करता , वह कभी सुखी नहीं रह पाता l अपना पेट तो छोटी सी चींटी भी भर लेती है l दूसरों का पेट भरो और उन पेटों को भरो , जो खाली हैं , जिनमे क्षुधा ( भूख ) की आग दहक रही है l जो अपने लिए नहीं , दूजे के लिए कुछ करता है , वही सच्चा इनसान है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' दूसरों के लिए किये गए इस तरह के परिश्रम में यदि निष्कामता का भाव हो , जनहित का भाव हो , तो ऐसा कर्म आध्यात्मिक कर्म बन जाता है , जिसका फल अनंत गुना मधुर एवं व्यापक होता है l '
मनुष्य जीवन की किसी भी अवस्था में और किसी भी स्थिति में परोपकार किया जा सकता है l बस इसके लिए संवेदनशील और उदार भावनाएं चाहिए l -------- प्राचीन समय में एक बूढ़ा बेसहारा आदमी भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह करता था l वह सवेरे से रात तक भटकता और अधिक से अधिक भिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करता l
वृद्ध की दिनचर्या का एक हिस्सा यह भी था कि वह सवेरे सोकर उठता , सबसे पहले शुद्ध होकर मंदिर जाता , वहां पूजा कर के भीख मांगने निकल जाता l अपनी कुटिया से मुख्य मार्ग की ओर जाते समय वह अनाज के दानों से मुट्ठियां भर लेता और जहाँ पक्षियों को देखता , वहां दाने बिखेर देता l दोपहर को जब खाना खाने बैठता तो आधे से अधिक खाना लोगों में बाँट देता l उसे अपना पेट भरने की इतनी अधिक चिंता नहीं होती , जितनी दूसरे भूखे लोगों की होती l जिस दिन वह अधिक परमार्थ करता , उस रात उसे बड़ी गहरी नींद आती और वह निश्चिंतता पूर्वक सो जाता l
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