3 July 2020

WISDOM ----

  बंगाल  के  प्रसिद्ध   उपन्यासकार  श्री  शरतचंद्र  ने  देशबंधु  दास  के  संबंध   में   एक  लेख  ' स्मृति  कथा '   वसुमती  नामक    मासिक  पत्रिका  में  प्रकाशित  कराया  था  जिसमे  उन्होंने  देशबंधु  के  जीवन  प्रसंगों  को  प्रकट  करते  हुए   लिखा    था ---- " पराधीन  जाति   का  एक  बड़ा  अभिशाप  यह  होता  है  कि  हमको  अपने  मुक्ति  संग्राम  में   विदेशियों  की  अपेक्षा   अपने  देश  के  लोगों  से  ही   अधिक  लड़ाई  लड़नी  पड़ती  है  l  "
     पराधीनता   मानसिक  हो  तो  स्थिति  और  भी  विकट   हो  जाती  है  l   मानसिक  रूप  से  पराधीन  व्यक्ति   अपनी  उपलब्धियों , अपने  गुणों  को  नहीं  देखता   वह  दूसरों    की  हर  बात  को  श्रेष्ठ  समझता  है   और  ऐसे  लोगों  की  जब  भीड़  इकट्ठी  हो  जाती  है   तब  वे  अपनी  सांस्कृतिक  विशेषताओं , अपनी  प्राचीन  उपलब्धियों  को  भी  भूलकर   विदेशियों  को  महत्व   देते  है  l  यह  भी  दुर्बुद्धि  है   कि    जिस  धरती  पर   जन्म  लिया  ,  जिस  वायुमंडल  में  सांस  लेकर  बड़े  हुए ,  जिस  प्राकृतिक  सम्पदा  के  संरक्षण  में  रहते  हैं  ,  उसे  श्रेष्ठ  न  समझकर  दूसरों  द्वारा  थोपी  गई  चीजों  को  हृदय  से  लगाते   हैं  l   अपनी  चीज  का  लाभ  नहीं  देखते   और  दूसरे  के  द्वारा  होने  वाली  हानि  को  ख़ुशी  से  स्वीकारते  हैं  l   जागरूक  होने  पर  ही  स्वार्थ  में  डूबी  दुनिया   के  चित्र  को  समझ  सकते  हैं  l

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