संसार में अनेक महान विद्वान् दार्शनिक , समाज - सुधारक हुए , जिन्होंने समाज में फैली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया , अपने जीवन का बलिदान भी किया लेकिन बुराइयाँ दूर नहीं हुई l मनुष्य ने अपनी बुद्धि का , प्रतिभा का सदुपयोग करना नहीं सीखा l जो समस्याएं , सामाजिक बुराइयाँ युगों पहले थीं , वे आज भी हैं l रंग , धर्म , लिंग , जाति , अमीर - गरीब , ऊंच - नीच , आदि आधारों पर आज भी संसार में भेदभाव है l जो अपने को श्रेष्ठ समझते हैं वे दूसरे पक्ष को मिटा डालना चाहते हैं l ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञानं ने मनुष्य को जो इतनी सुख - सुविधाएँ प्रदान की और यातायात और संचार क्रांति ने दूरियां समाप्त कर दी , दुनिया बहुत छोटी हो गई लेकिन इनसे निकलने वाली हानिकारक तरंगों ने न केवल पर्यावरण को प्रदूषित किया बल्कि मनुष्य के हृदय की संवेदना को भी सुखा दिया l जब तक विकास नहीं हुआ था , लोगों में प्रेम था , सहयोग था , हृदय में संवेदना थी लेकिन इस विकास ने मनुष्य को हृदयहीन बना दिया l अब अत्याचार करने , दूसरों को अपने आधीन बनाने के तरीके भी आधुनिक हो गए हैं l अपनी लोभ - लालसा और तृष्णा के कारण वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग भी मनुष्य अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए करने लगा है l
जब मनुष्य स्वयं जागेगा और समझेगा कि ये भेदभाव उचित नहीं है , कमजोर को मिटाने के प्रयासों की प्रतिक्रिया एक दिन उन्हें भी मिटा देगी l जब ' जियो और जीने दो ' की भावना जागेगी तभी मनुष्य सच्चे अर्थ में मनुष्य होगा l
जब मनुष्य स्वयं जागेगा और समझेगा कि ये भेदभाव उचित नहीं है , कमजोर को मिटाने के प्रयासों की प्रतिक्रिया एक दिन उन्हें भी मिटा देगी l जब ' जियो और जीने दो ' की भावना जागेगी तभी मनुष्य सच्चे अर्थ में मनुष्य होगा l
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