संस्कृत भाषा में एक सुभाषित है कि ' धनवान अथवा राजा तो अपने देश में ही पूजा जाता है l पर विद्वान् सर्वत्र पूजनीय होता है l
उस समय जब भारतवर्ष पूर्ण रूप से अंग्रेजों के आधीन था और गोरी जातियां यहाँ के निवासियों को काला कहकर उपेक्षा की दृष्टि से देखती थीं , पर उसी जाति का होने पर भी रवीन्द्रनाथ टैगोर दुनिया के जिस भी देश में गए , वहां उनका एक देवदूत अथवा राजा - महाराजाओं जैसा स्वागत किया गया l चीन , जापान , ईरान आदि सभी देशों ने उन्हें प्यार व सम्मान दिया l इटली पहुँचने पर वहां के तानाशाह मुसोलिनी ने कहा --- ' मैं आपकी रचनाओं को बड़े प्रेम से पढ़ता हूँ और मुझे वे पसंद आती हैं l '
श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1904 में एक ' स्वदेशी समाज ' की स्थापना की थी l इसके सदस्य प्रतिज्ञा करते थे कि वे स्वदेशी वस्तुओं का ही णप्रयोग करेंगे l शिक्षा , साहित्य , समाज आदि सभी विषयों में ' स्वदेशी ' की भावना को प्रधानता देंगे l महात्मा गाँधी का भी यही विचार था कि जीवन की दो सबसे बड़ी और दैनिक आवश्यकताएं --- भोजन और वस्त्र के संबंध में मनुष्य पूर्ण स्वावलम्बी हो सके तो उसके कष्टों और परेशानियों का बहुत कुछ अंत हो सकता है l स्वदेशी मन्त्र मानव जीवन को सुखी बनाने का राजमार्ग है l इसका असली तात्पर्य है --- स्वावलम्बी होना l हम अपने जीवन निर्वाह की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर जितना कम आश्रित होंगे उतना ही हमारा जीवन सुखी हो सकता है l
उस समय जब भारतवर्ष पूर्ण रूप से अंग्रेजों के आधीन था और गोरी जातियां यहाँ के निवासियों को काला कहकर उपेक्षा की दृष्टि से देखती थीं , पर उसी जाति का होने पर भी रवीन्द्रनाथ टैगोर दुनिया के जिस भी देश में गए , वहां उनका एक देवदूत अथवा राजा - महाराजाओं जैसा स्वागत किया गया l चीन , जापान , ईरान आदि सभी देशों ने उन्हें प्यार व सम्मान दिया l इटली पहुँचने पर वहां के तानाशाह मुसोलिनी ने कहा --- ' मैं आपकी रचनाओं को बड़े प्रेम से पढ़ता हूँ और मुझे वे पसंद आती हैं l '
श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1904 में एक ' स्वदेशी समाज ' की स्थापना की थी l इसके सदस्य प्रतिज्ञा करते थे कि वे स्वदेशी वस्तुओं का ही णप्रयोग करेंगे l शिक्षा , साहित्य , समाज आदि सभी विषयों में ' स्वदेशी ' की भावना को प्रधानता देंगे l महात्मा गाँधी का भी यही विचार था कि जीवन की दो सबसे बड़ी और दैनिक आवश्यकताएं --- भोजन और वस्त्र के संबंध में मनुष्य पूर्ण स्वावलम्बी हो सके तो उसके कष्टों और परेशानियों का बहुत कुछ अंत हो सकता है l स्वदेशी मन्त्र मानव जीवन को सुखी बनाने का राजमार्ग है l इसका असली तात्पर्य है --- स्वावलम्बी होना l हम अपने जीवन निर्वाह की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर जितना कम आश्रित होंगे उतना ही हमारा जीवन सुखी हो सकता है l
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