पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- " मनुष्य की धर्म , न्याय , नीति में अभिरुचि होनी चाहिए l उसके लिए वह सहज वृति है l यदि इस दिशा में प्रगति न हो पाई तो अंतत: मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है l "
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' धूर्तता के बल पर आज कितने ही अपराधी प्रवृति के लोग क़ानूनी दण्ड से बच निकलने में सफल हो जाते हैं लेकिन असत्य का आवरण अंतत: फटता ही है l जनमानस में व्याप्त घृणा का सूक्ष्म प्रभाव उस मनुष्य पर अदृश्य रूप से पड़ता है l उसकी आत्मा उसे धिक्कारती है और जिसकी आत्मा धिक्कारेगी उसके लिए देर - सबेर सभी कोई धिक्कारने वाले बन जायेंगे l ऐसी धिक्कार एकत्रित कर के यदि मनुष्य जीवित भी रहा तो उसका जीवन न जीने के बराबर है l जो लोग इनसे लाभ उठाते हैं , वे भीतर ही भीतर उनसे घृणा करते हैं और समय आने पर शत्रु बन जाते हैं l
विपुल साधन - संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख - शांति पूर्वक नहीं रह पाते क्योंकि उन उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किए रहती है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' धूर्तता के बल पर आज कितने ही अपराधी प्रवृति के लोग क़ानूनी दण्ड से बच निकलने में सफल हो जाते हैं लेकिन असत्य का आवरण अंतत: फटता ही है l जनमानस में व्याप्त घृणा का सूक्ष्म प्रभाव उस मनुष्य पर अदृश्य रूप से पड़ता है l उसकी आत्मा उसे धिक्कारती है और जिसकी आत्मा धिक्कारेगी उसके लिए देर - सबेर सभी कोई धिक्कारने वाले बन जायेंगे l ऐसी धिक्कार एकत्रित कर के यदि मनुष्य जीवित भी रहा तो उसका जीवन न जीने के बराबर है l जो लोग इनसे लाभ उठाते हैं , वे भीतर ही भीतर उनसे घृणा करते हैं और समय आने पर शत्रु बन जाते हैं l
विपुल साधन - संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख - शांति पूर्वक नहीं रह पाते क्योंकि उन उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किए रहती है l '
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