महर्षि चाणक्य ने अपनी बुद्धि और संकल्पशीलता के बल पर तात्कालिक नन्द वंश का विनाश कर उसके स्थान एक साधारण बालक चन्द्रगुप्त को स्वयं शिक्षित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया l
चन्द्रगुप्त को इस बात की पूर्ण आशंका बनी हुई थी कि उसकी सीमित शक्ति नन्द वंश का मुकाबला न कर सकेगी l सीधे आक्रमण साहस नहीं हो रहा था , अंत में उसने अपनी आशंका गुरु चाणक्य से व्यक्त कर दी l
महापंडित चाणक्य को पद्मानंद की आंतरिक कमजोरियों का पता था , उन्होंने कहा --- " किसी के पास विशाल चतुरंगिणी सेना हो , किन्तु चरित्र न हो तो अपनी इस दुर्बलता के कारण वह अवश्य नष्ट हो जाता है l " चन्द्रगुप्त का अपने हाथ से राज्याभिषेक करते हुए चाणक्य ने कहा था ---
' केवल एकनिष्ठ कर्तव्यशीलता , आत्मविश्वास , अविरत प्रयत्न तथा सत्य के पक्ष में रहने के बल पर कोई साधन न होने पर भी मेरी प्रतिज्ञा पूरी हुई l l '
चन्द्रगुप्त को इस बात की पूर्ण आशंका बनी हुई थी कि उसकी सीमित शक्ति नन्द वंश का मुकाबला न कर सकेगी l सीधे आक्रमण साहस नहीं हो रहा था , अंत में उसने अपनी आशंका गुरु चाणक्य से व्यक्त कर दी l
महापंडित चाणक्य को पद्मानंद की आंतरिक कमजोरियों का पता था , उन्होंने कहा --- " किसी के पास विशाल चतुरंगिणी सेना हो , किन्तु चरित्र न हो तो अपनी इस दुर्बलता के कारण वह अवश्य नष्ट हो जाता है l " चन्द्रगुप्त का अपने हाथ से राज्याभिषेक करते हुए चाणक्य ने कहा था ---
' केवल एकनिष्ठ कर्तव्यशीलता , आत्मविश्वास , अविरत प्रयत्न तथा सत्य के पक्ष में रहने के बल पर कोई साधन न होने पर भी मेरी प्रतिज्ञा पूरी हुई l l '
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