इस संसार में धन - सम्पदा का बहुत मूल्य है l धन - सम्पदा से सब कुछ ख़रीदा जा सकता है l किसी की बुद्धि , ज्ञान , वैज्ञानिक प्रतिभा आदि सभी कुछ धन से खरीद कर विकृत मानसिकता के लोग अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करते हैं l जिसे विकृत कहा जाता है , वह अति के धनी लोगों का शौक होता है l इसी शौक का परिणाम हमें संसार में देखने को मिलता है l ईश्वर ने इस संसार में सब कुछ शुद्ध , पवित्र बनाया , कहीं कोई मिलावट नहीं l जब तक इनसान को प्रकृति पर , ईश्वर की सत्ता पर विश्वास था , सब स्वस्थ थे , लोगों के हृदय में संवेदना थी l लेकिन लोगों के शौक ने बीज , वनस्पति , पशु -पक्षी सब में मिलावट कर नई किस्म तैयार कर दी l इतने इंजेक्शन , इतनी दवाइयाँ हो गई हैं कि नर - नारी का अस्तित्व भी खतरे में है l
ईश्वर ने जो नहीं बनाया , वह भी समाज में है , यह सब विकृति ही है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' धन के प्रति अत्यधिक आसक्ति मनुष्य को लाचार बना देती है और मन को संकीर्णता से भर देती है , ऐसा होने पर मनुष्य अशुभ कर्म करने से भी नहीं चूकता l जब से स्वार्थी सोच ने राजनीति , धर्म , पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तब से उन क्षेत्रों में अनैतिकता , अराजकता व झूठ का प्रवेश हो गया l इन क्षेत्रों में अब ईमानदारी दिखाई नहीं देती l पैसे के लिए ही लोग कार्य करते हैं और पैसे के लिए ही पद चाहते हैं l '
धन के साथ एक बड़ी बात यह भी है कि धन जिस प्रकार से अर्जित किया जाता है , उसका व्यय भी उसी रूप में होता है l यदि किसी ने छल - कपट से , संसार में बुराइयां , अनैतिकता , अपराध और बीमारी फैलाने वाले कार्य कर के बहुत धन कमाया है , अब यदि वह बहुत दान देता है , समाज कल्याण के नाम पर बहुत दान , सहायता , चंदा आदि देता है तो उसकी यह पाप की कमाई जहाँ भी जाएगी वहां अनाचार , अनैतिकता , अपराध , जीवन में तनाव आदि नकारात्मकता बढ़ेगी l ईमानदारी और परिश्रम से अर्जित धन लोगों को संस्कारवान बनाता है , संसार में सुख - शांति देता है l
ईश्वर ने जो नहीं बनाया , वह भी समाज में है , यह सब विकृति ही है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' धन के प्रति अत्यधिक आसक्ति मनुष्य को लाचार बना देती है और मन को संकीर्णता से भर देती है , ऐसा होने पर मनुष्य अशुभ कर्म करने से भी नहीं चूकता l जब से स्वार्थी सोच ने राजनीति , धर्म , पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तब से उन क्षेत्रों में अनैतिकता , अराजकता व झूठ का प्रवेश हो गया l इन क्षेत्रों में अब ईमानदारी दिखाई नहीं देती l पैसे के लिए ही लोग कार्य करते हैं और पैसे के लिए ही पद चाहते हैं l '
धन के साथ एक बड़ी बात यह भी है कि धन जिस प्रकार से अर्जित किया जाता है , उसका व्यय भी उसी रूप में होता है l यदि किसी ने छल - कपट से , संसार में बुराइयां , अनैतिकता , अपराध और बीमारी फैलाने वाले कार्य कर के बहुत धन कमाया है , अब यदि वह बहुत दान देता है , समाज कल्याण के नाम पर बहुत दान , सहायता , चंदा आदि देता है तो उसकी यह पाप की कमाई जहाँ भी जाएगी वहां अनाचार , अनैतिकता , अपराध , जीवन में तनाव आदि नकारात्मकता बढ़ेगी l ईमानदारी और परिश्रम से अर्जित धन लोगों को संस्कारवान बनाता है , संसार में सुख - शांति देता है l
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