26 September 2020

WISDOM ----- अत्याचारी और अनीति पर चलने वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए

  भीष्म  पितामह  शरशय्या   पर  थे  l   उत्तरायण   की  प्रतीक्षा  थी  l   युद्ध  रुक  चूका  था  l   सभी  उनके  पास  आते   एवं   उनसे  धर्म  का  मर्म  पूछते  l   वे  सब  की  जिज्ञासाओं  का  यथोचित  उत्तर  देते  l   पाँचों  पांडव  व  महारानी   द्रोपदी  भी  उन्हें  प्रणाम  करने  आये  l   पितामह  को  ऐसे  शरशय्या  पर  लेटा   देख   सबका  हृदय   दुःखी   था  ,  पर  द्रोपदी  उन्हें   धर्मोपदेश  देते  देखकर  हँसने   लगी  l   युधिष्ठिर  ने  उलाहना   दिया --- 'ऐसे  समय  में  यह  असामाजिक  आचरण  क्यों  ? '   तब  द्रोपदी  ने  कहा  --- मुझे  सीधे  पितामह  से  बात  करने  दीजिए  l "  पितामह  ने  स्नेहपूर्वक   द्रोपदी  से  कहा  कि   वह  अपनी  बात  कहे  l    तब  द्रोपदी  बोलीं  ---  " जब  आप  कौरवों  के  साथ  राजसभा  में  थे    व  मेरी  लाज  लुट   रही  थी  ,  तब  आपका  यह  धर्मज्ञान  कहाँ  चला  गया  था   तात  ! "  भीष्म   बोले ---- " द्रोपदी  !  तेरा  असमंजस  सही  है  l   कुधान्य  से  मेरी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई  थी  l   उचित - अनुचित  का  भेद  भी  नहीं  था  l  उसके  एहसानों   ने  मेरा  मुँह   बंद  कर  दिया   था  l  अब   वह  कुधान्य  रक्त  बनकर  मेरे  घावों  से  रिस  रहा  है    तो  धर्मोपदेश  का  सही  समय  व  अधिकार  मेरे  पास  है  l  "  द्रोपदी  का  समाधान  हो  गया  l 

No comments:

Post a Comment