पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- हम विश्व ब्रह्माण्ड में जहाँ कहीं भी हों , हमारे कर्म हमारा पीछा करते ही रहते हैं और तब तक समाप्त नहीं होते , जब तक हम उन्हें भोग नहीं लेते l ' महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ , भीष्म शरशैया पर लेटे थे l भगवान श्रीकृष्ण सब पांडव सहित उनसे धर्म का उपदेश लेने गए l तब भीष्म पितामह ने कहा --- " आप कहते हैं तो उपदेश मैं अवश्य दूंगा , किन्तु हे केशव ! मेरी एक शंका का समाधान करें l मैं जनता हूँ कि कर्मों का फल भोगना पड़ता है l मैंने ध्यान कर के देखा कि मैंने इस जन्म में और पिछले 72 जन्मों में भी ऐसा कोई क्रूर कर्म नहीं किया , जिसके फलस्वरूप मुझे बाणों की शैया पर शयन करना पड़े l " उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --- " पितामह ! यदि आप पिछला एक और जन्म देख लेते तो आपकी जिज्ञासा का समाधान हो जाता l पिछले 73 वें जन्म में आपने ओक के पत्ते पर बैठे हुए हरे रंग के टिड्डे को पकड़कर उसको बबूल के काँटे चुभोए थे , आज आपको वही काँटे बाण के रूप में मिले हैं l " पुराणों में एक और कथा है ---- स्वर्ग के राजा इंद्र के पुत्र जयंत ने माँ सीता के पैर में कौवे के रूप में चोंच मार दी l उनके पैर से रक्त निकल आया l भगवान श्रीराम ने यह देखकर समीप रखे कुशा के एक तिनके को उठाया और उसे मंत्रसिक्त कर के जयंत की ओर फेंक दिया l कुशा के उस तिनके ने अभेद्य बाण का रूप ले लिया और जयंत के पीछे पड़ गया l इस बाण से बचने के लिए जयंत सभी लोकों में भागता फिर l स्वयं उसके पिता से लेकर भगवान ब्रह्मा ने उसको शरण नहीं दी , उसकी सहायता करने से मना कर दिया l अंत में उसे भगवान राम की शरण में ही आना पड़ा l उन्होंने उसे क्षमा तो किया परन्तु कर्मफल के रूप में उसे अपनी एक आँख गँवानी पड़ी l कर्म का फल सबको भोगना पड़ता है l
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