ऋषि कहते हैं --- लोग पूजा - कर्मकांड तो बहुत करते हैं लेकिन उनकी भावनाएं ईश्वर को समर्पित नहीं होतीं l हजारों - लाखों ठोकरें खाने के बावजूद संसार से कभी अपनापन टूटता नहीं l प्राय: सभी लोग अपना नाता उन पुरखों से सहज अनुभव कर लेते हैं , जिन्हे उन्होंने कभी देखा ही नहीं परन्तु आदिशक्ति माँ , जिनकी कोख से हमारी आत्मा जन्मी , जो अनेकों बार हमें संकटों की यातना से त्राण दिलाती हैं , उनके स्मरण से हृदय में न तो कोई पुलकन होती है और न ही भवानी के प्रति भावनाएं आकृष्ट हो पाती हैं l संसार द्वारा दिए गए आघात - प्रतिघात मानव मन में थोड़ी देर के लिए विवेक और वैराग्य को जन्म देते हैं , किन्तु थोड़ी ही देर बाद पुन: मन संसार में भटकने लगता है l
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