भौतिक प्रगति के नाम पर मनुष्य ने सुख - सुविधाओं के अंबार खड़े कर लिए किन्तु वह पहले की अपेक्षा दुःखी , परेशान , निराश , अशांत व असंतुष्ट है l इसका कारण यही है कि मनुष्य ने मानवीय जीवनमूल्यों की उपेक्षा की और स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष में उलझकर संवेदना को भूल गया l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' इस संसार की समस्त समस्याओं का एकमात्र हल संवेदना है l संवेदनशील व्यक्ति कभी हिंसा के मार्ग पर नहीं चलता l ' एक प्रसंग है ------ कौशांबी के राजगृह में कारू कसूरी नामक कसाई रहता था l वह पशुओं का मांस बेचकर अपनी जीविका चलाता था l राजगृह में बौद्ध संत आते रहते थे l संत किसी भी प्रकार की हिंसा न करने की प्रेरणा दिया करते थे l कारू कसूरी कहता था --- मैं अपने पुरखों के धंधे को कैसे छोड़ दूँ ? यदि मैं हिंसा न करूँ तो खाऊंगा क्या ? जब कारू कसाई वृद्ध हो गया तो उसने तलवार अपने बेटे सुलस को सौंप दी l कसाइयों की पंचायत में सुलस से कहा गया कि कुलदेवी की प्रतिमा के समक्ष भैंसे की बलि दो l सुलस का हृदय पशुओं के वध के समय उनकी छटपटाहट देखकर द्रवित हो उठता था l अत: उससे तलवार न उठी l मुखिया ने दोबारा उससे कहा --- " बेटे ! यह हमारी कुल परंपरा है l देवी को प्रसन्न करने के लिए रक्त निकालना पड़ता है l " सुलस ने भैंसे की जगह अपने पैर पर तलवार से वार कर दिया l पैर से खून बहने लगा l ऐसा करने का कारण पूछने पर सुलस बोला ---- " यदि कुलदेवी को रक्त की चाहत है तो किसी निर्दोष का खून बहाने से बेहतर है कि वे मेरा ही रक्त स्वीकार कर लें l उसका उत्तर सुनकर कारू कसाई का हृदय द्रवित हो उठा और उस दिन के बाद उस परिवार में पशुवध बंद कर दिया गया l
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