पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' हम दूसरों के प्रति जो भी बुरा सोचते हैं , घृणा व नफरत करते हैं , क्रोधित होते हैं , गुस्सा करते हैं , वह सब अपने मन में करते हैं l ये सब कलुषित भावनाएं मन में होने के कारण हमें ही ज्यादा नुकसान पहुँचाती हैं l इन सबके कारण दूसरे व्यक्तियों का कोई नुकसान नहीं होता , बल्कि हमारा ही अंतर्मन इनकी आग से जलने लगता है व अशांत होने लगता है l हमारी ही शांति , हाहाकार में तब्दील हो जाती है और ऐसी स्थिति में हम न तो कुछ अच्छा सोच पाते हैं और न कुछ अच्छा कर पाते हैं l ऐसा करने से हमारा मन कलुषित हो जाता है जिससे हम परमात्मा से भी दूर हो जाते हैं l ' आचार्य श्री का कहना था --- ' कभी भी किसी की बुराई को अपनी चर्चा का विषय न बनाया जाये , क्योंकि यदि किसी के प्रति थोड़ी भी बुराई या चर्चा किसी से भी की जाती है तो वह वापस लौटकर कभी न कभी , किसी न किसी रूप में हमारे पास जरूर आती है l '
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