गाँधीजी के जीवन की एक घटना है --- बात चंपारण जिले की है l गाँधीजी उस क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का वातावरण बनाने के लिए गाँव - गाँव घूम रहे थे l एक गाँव में उन्होंने पशुबलि का जुलूस निकलते देखा l देवी को बकरा चढ़ाने एक समूह गाता - बजाता जा रहा था l गाँधीजी ने दृश्य देखा , तो उन्होंने एकत्रित लोगों को वैसा न करने के लिए समझाया l न माने तो एक नया प्रस्ताव रखा -- गाँधीजी ने कहा -- पशु के रक्त से मनुष्य का रक्त उत्तम ही होगा l तुम लोग अपने देवता पर मेरी बलि चढ़ा दो l उन्होंने सिर नीचे झुका लिया और वहां जा खड़े हुए , जहाँ बकरा कटना था l सन्नाटा छा गया , ग्रामीण लौट गए और उस क्षेत्र से बलि - प्रथा सदा के लिए समाप्त हो गई l
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